वानस्पतिक नाम: रावोल्फिया सर्पेंटीना
सर्पगन्धा का लैटिन नाम: Rauwolifa serpentina
परिवार: Apocynaceae
अंग्रेजी नाम: सर्पेन्टीन (Rauwolfia serpentina) या स्नेक रूट (Indian Snakeroot)
हिन्दी नाम: छोटा चाँद ,धवल वरूआ, सुगंधा
औषधीय भाग: जड़, तना तथा पत्ती
प्राचीनकाल से ही सर्पगंधा उन्माद और पागलपन के इलाज के लिए उपयोग की जाती रही है।
सर्पगन्धा का नाम सर्पगंधा इसलिए पड़ा क्योंकि सर्प इस वनस्पति की गंध पाकर दूर भाग जाते हैं।
सर्पगन्धा (Indian Snakeroot) एपोसाइनेसी परिवार का द्विबीजपत्री बहुवर्षीय झाड़ीदार सपुष्पक और महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है।
यह एक अत्यन्त उपयोगी पौधा है। सर्पगन्धा 75 सेमी से 1 मीटर ऊचाई तक बढता है। इसकी जडे सिर्पिल तथा 0.5 से 2.5 सेमी व्यास तक होती हैं तथा 40 से 60 सेमी गहराई तक जमीन में जाती हैं।
इसपर अप्रैल से नवम्बर तक लाल सफेद फूल गुच्छो मे लगते है।
सर्पगंधा की जडों मे बहुत से एल्कलाईडस पाए जाते है जिनका प्रयोग रक्तचाप, अनिद्रा, उन्माद, हिस्टीरिया आदि रोगों के उपचार में होता है।
#सर्पगंधा 18 माह की फसल है। इसे बलुई दोमट से लेकर काली मिट्टी मे उगाया जा सकता है।
पागलपन, मानसिक असंतुलन, हिस्टीरिया एवं मिर्गी के उपचार में सर्पगंधा की जड़ों के अर्क का प्रयोग किया जाता है।
सर्पगन्धा (Indian Snakeroot) की जड़ें कड़वी, तीखी, पौष्टिक एवं विषहर होती हैं।
प्राचीन काल से सर्पगंधा की जड़ों का उपयोग विषनाशक के रूप में सर्पदंश तथा कीटदंश के उपचार में होता रहा है।
सर्पगंधा की जड़ों का उपयोग उच्च-रक्तचाप, ज्वर, वातातिसार, अतिसार, अनिद्रा, उदरशूल, हैजा आदि के उपचार में होता है।
Indian Snakeroot की जड़ के अर्क का उपयोग फोड़े-फुँसियों के उपचार में भी किया जाता है।
सांप के काटने पर सर्पगंधा का पाउडर विक्टिम को खिलाया जाता है या फिर सर्पदंश की जगह लगाया भी जाता है। सांप के डसने पर इससे एंटीडोट का काम लिया जाता है।
इससे टेंशन, एंग्जायटी और चिंता से मुक्ति मिलती है और मोटे लोगों के लिए बहुत प्रभावशाली है।
गर्भवती महिलाओं के लिए सर्पगंधा के अर्क का बहुत ही महत्व हैं। इस पौधे को जडों का अर्क प्रसव पीडा के दौरान बच्चे के जन्म को सुलभ बनाने के लिए दिया जाता है।
सर्पगंधा की पत्तियों का रस हमारे आँखों के लिए बहुत ही उपयोगी है। यदि हम सर्पगंधा की पत्तियों का रस नियमित रूप से अपनी आँखों मे डालें तो हमारे आँखों की रोशनी को बढ़ाने में काफी सहायता प्राप्त होती हैं।
हिमालय के तराई क्षेत्र में विशेषकर देहरादून शिवालिक पहाड़ी के क्षेत्र से लेकर आसाम तक बिहार महाराष्ट्र तमिलनाडु आदि प्रांतों में इसकी खेती भी की जाती है तथा स्वयं भी उत्पन्न होती है।
रस : तिक्त
वीर्य : उष्ण
विपाक : कटु
प्रभाव : निंद्राजनन
गुण : रुक्ष
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