वंश : सूर्यवंशी (निकुम्भ वंश की शाखा)
गोत्र : भारद्वाज
प्रवर : भारद्वाज, अंगिरस, वार्हस्पत्य
कुलदेवी : चण्डिका (चन्द्रिका)
वेद : सामवेद
शाखा : कौथुमी
सूत्र : गोभिल,गृहसूत्र
धर्म : शाक्त व वैष्णव
चिन्ह : लाल सूर्य
प्रमुखगद्दी : श्री नगर (टिहरी, गढ़वाल)
श्रीनेत निकुम्भ्वंश की एक प्रसिद्द शाखा है।
गोरखपुर के उत्तर में कपिलवस्तु नाम की एक रियासत थी। वहां के राजा दीर्घबाहु थे, जो कौशलपुर के राजा बाहुसुकेत के समकालीन थे।
इन्होने कपिलवस्तु राज्य को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया। तत्पश्चात कुसुमपुर के राजा अशोक ने इस सूर्यवंशी राजा को वि० सं० 197 से पूर्व चढ़ाई करके उसका राज्य छीन लिया फिर यहाँ से ये आगे जहाँ तहाँ जा बसे।
इसी वंश के कुछ वीरों ने हिमालय के तराई में अपने राज्य की स्थापना की तथा श्रीनगर बसाया। इस वंश के राजा अत्यंत स्वाभिमानी थे।
इस राजवंश की श्रीनेत/ सिरनेत/ शिरनेत उपाधि है।
कुछ इतिहासकारों ने लिखा है की इस वंश के किसी प्रसिद्द व्यक्ति को राजा विक्रमादित्य ने यह पदवी दी थी जिससे ये लोग शिरनेत या श्रीनेत कहे जाने लगे।
कई पीढ़ियों बाद चन्द्रभाल के वंशज मकरन्दसिंह श्रीनगर से गोरखपुर आये, यहाँ इन्हे रियासतों से बहुत से गांव मिले। जब इनका खानदान बढ़ा तब ये और भी गांवों में फैलने लगे। ये लोग बांसगांव के बाबू के नाम से भी प्रसिद्ध हैं।
श्रीनेत या सिरनेत क्षत्रियों का राज्य 1857ई० के ग़दर में अंग्रज़ों के विरुद्ध संघर्ष करने के कारण जाता रहा। इस वंश की रियासतें बांसी, बस्ती और उतरौला जिला गोरखपुर में है तथा छोटे छोटे गांव अवध में पाये जाते हैं। साथ ही बिहार के मुज़्ज़फ़रपुर, भागलपुर, छपरा, दरभंगा आदि जिलों में है।
नरौनी ( नरवनी) क्षत्रिय सूर्यवंशी (श्रीनेत क्षत्रियों की शाखा) नरौनी क्षत्रिय सूर्यवंशी हैं तथा ये श्रीनेत क्षत्रियों की एक शाखा है। गोत्र प्रवर आदि श्रीनेत के सम्मान है।
ये मुज़्ज़फरनगर, बलिया, गाजीपुर, गोरखपुर आदि जिलों में रहते हैं। यह वंश राजा नल द्वारा बसाया गया। नरवरगढ़ में रहने के कारण ये नरौनी या नरवनी कहलाये जाने लगे। इस वंश के लोग बिहार के छपरा, मुज़्ज़फ़रपुर आदि जगहों पर भी मिलते हैं।
दशहरे के दिन गोरखपुर के उनवल से संबद्ध क्षत्रियों में परंपरा स्वरूप माँ दुर्गा को रक्त चढाने का विधान है ।
क्षत्रियों में वीरता हेतु शक्ति और एकलिंग जी यानि शिव की उपासना का गौरवशाली इतिहास है । हिंदू संस्कृति में वीरता की साधना के क्रम में रक्त अर्पित करने की परंपरा का समृद्ध इतिहास है ।
मुगलकाल में हिंदुओं पर बढ़ते अत्याचारों और बौद्ध अहिंसा के अतिवाद से आजिज समाज ने जब पुनः शक्ति अर्जन का मार्ग पकड़ा तो इस तरह हिंदू समाज को निर्भीक बनाने हेतु तमाम लोक मान्यताएं बनीं और बहुत हद तक यह मान्यताओं ने समाज के अंतिम बिंदु तक को प्रभावित भी किया यही कारण है कि हम इस्लाम का प्रतिकार करने में सफल भी हुए ।
व्रात्य क्षत्रियों की सफलता से वापसी हुई और वीरता एक जनांदोलन बन गई ।
उनवल के क्षत्रियों की अपनी कुल देवी को ललाट के मध्य से रक्त निकाल कर चढाने की परंपरा ने निश्चय ही इनके भीतर वीरता का भाव भरा होगा । ललाट के मध्य में उर्ध्व चीरा लगाकर रक्त चढाने की परंपरा ऐसी ही है जैसे कि माता दुर्गा का तीसरा नेत्र खोलना यानि वीरता की परमावस्था यानि चंडी रूप धारण करना ।
ललाट पर उर्ध्व चीरा लगाकर मां दुर्गा के तीसरे नेत्र यानि “श्री नेत्र” खोलकर वीरता के उस भाव को पूजने की प्रथा के कारण इस क्षत्रिय समाज का नाम “श्रीनेत” पड़ा ।
वीरता की इस उपासना को अक्ष्क्षुण्ण बनाए रखने के लिए “श्रीनेत” क्षत्रिय समाज शुभकामना के अधिकारी हैं ।
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मैं भी श्रीनेत ठाकुर हु (आनंद सिंह श्रीनेत्र )
mera name sagar singh shrinet or bhagvanpur dist- ghorkhpur hai
Mera nam Devansh Pratap Singh h me bhagwanpur , gorkhpur ka rahne wala hu .
Mera naam Pawan Singh hai.. Mai bhi shrinet Thakur hu..
Mai Bansgaon Gorakhpur ka rahne wala hu...
Mai har saal Navratra k 9ve din maa Durga k mandir me rakt arpit karta hu
I'm shrinet I am interested in history of shrinet
Me dhananjay pratap singh Shrinet hu
Mere purvaj bansgaon se aye the
5 bhaiyio me se Kuchh sardhua Chitrakoot me bas gye ye mere dada ji batate te
Mere pardada ji ka name bander baba ta
Mai Naroni khastriy hu balia jila ka hu
i am also srinet from bansgaon ,gorakhpur
I m Srinet Thakur from Unwal riyasat.
Bansi aor Baghaoli ki bare me kino nahi likha Gaya ?
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