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शिवलिंग का सच और विज्ञान क्या है ? | Scientific Explanation of Shiva Linga

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शिवलिंग का सच और विज्ञान क्या है ?

Scientific Explanation of Shiva Lingam

शिव मात्र एक आस्था के प्रतीक ही नहीं अपितु सत्य सनातन संस्कृति के प्रथम पुरुष एवं मनुष्य द्वारा ब्रह्माण्ड में निहित सबसे बड़े वैज्ञानिक खोज में से एक हैं…….शिवलिंग रूप शिव मात्र जलाभिषेक और पयाभिषेक के प्रतीक न होकर ….ब्रह्माण्ड की धुरी हैं …..शिव, आकाशगंगा के मथते हुए निहारिकाओं के केंद्र हैं …..करोणों सूर्य जिनकी परिक्रमा कर रहे हैं…… नासा के दूरबीनों के द्वारा खीचे हुए आकाशगंगाओं के केंद्राभिमुख होते चित्रों के मूल में हैं शिव तत्त्व ही विराजमान है।

जब हम कहते हैं शिवोऽहम् शिवोऽहम्,  तो इसका अर्थ है हम तद्क्षण ब्रह्माण्डीय सत्ता के साथ लय करते हैं। समाविष्ट होते हैं जिसे रामनुजाचार्य ने विशिष्टाद्वैत में व्याख्यायित किया है।

शक्ति (energy) और द्रव्यमान (mass) का संयोग हैं शिव ……शव + शक्ति = शिव।  उर्जा और द्रव्यमान को फोटान में बदलने की प्रक्रिया में निहित हैं शिव …..जिस से ब्रह्माण्ड यानि यह ब्रह्म का अण्ड का उदय हुआ … और इस तरह से भारतीय मनीषा ने इन शिव को परम “कल्याण” का स्वरुप माना…….

शिव ही मूल हैं ……फिर शिव को मानवीय धारणाओ में समाहित करने को शिवलिंग का स्वरुप प्रकट हुआ …. भारतीय आध्यात्म चिंतन में शिवलिंग का क्या विज्ञान है ….

भारत 5 लिंगों में विश्वास करता है:

पुलिंग – जो पुरुष है शुक्राणु का सृजन करता है

स्त्री – नारी जो श्रृष्टि को अपने गर्भ में धारण करती है ….

नपुंसक लिंग – जो ब्रह्माण्ड में जनम देने की प्रक्रिया में अपना योगदान नहीं दे सकता …..

उभय लिंगी जिसके पास दोनों लिंग हों परन्तु वो स्वतः के लिंगों से जनम देने की प्रक्रिया न पूरी कर सकें ….जैसे जीव हैं ..केचुआ …इसी वर्ग का है|
इतना तो पूरी दुनिया मानती है ….परन्तु धन्य भारतीय संस्कृति ने निराकार शिव से वेदों में पूछ लिया की तुम कौन हो और कैसे उत्पन्न किया इस ब्रह्माण्ड को …और हमने जाना…..

शिवलिंग…..एक मात्र निराकार ब्रह्म जो ऐसा है की स्वतः स्फूर्त नर नारी का गुण समेटे …स्वयं में ही जन्म देने के गुणों से युक्त है ……और इसलिए भारतीय मनीषा ने शिवलिंग की पूजा प्रारम्भ किया …..जो अर्धनारीश्वर है …जो उभय गुणों को समेटे है …और ब्रह्माण्ड में अद्वितीय लिंग है

शिवलिंग के ऊपर का भाग अंतरिक्ष ,मध्य पृथ्वी और नीचे भूमि में छुपा हुआ भाग पातळ या गहराई का द्योतक है …..इस तरह से हम ब्रम्ह और ब्रह्माण्ड की पूजा करते हैं ……

मेरा

शिव की पूजा का प्राकृतिक विज्ञान:

जलाभिषेक सीखा है हमने प्रकृति के रूद्रभिषेकों से …..हिमालय स्वरुप विशालता को कल कल करती नहलाती असंख्य नदी नदों और ग्लासियरों से ……..
यही अर्धनारीश्वर फिर शंकर कहलाते हैं….hybrid का अर्थ है मिश्रित स्वरुप जो हम विज्ञान में hybridisation के रूप में पढ़ते हैं .ठीक बिल्कुल उसी प्रकार……… शिवलिंग के सन्दर्भ में लिंग शब्द से अभिप्राय ……………… चिह्न, निशानी, गुण, व्यवहार या प्रतीक है।

ध्यान देने योग्य बात है कि………..”लिंग” एक संस्कृत का शब्द है………

लिंग पर संस्कृत के श्लोक:

“त आकाशे न विधन्ते” -वै०। अ ० २ । आ ० १ । सू ० ५

अर्थात….. रूप, रस, गंध और स्पर्श ……..ये लक्षण आकाश में नही है ….. किन्तु शब्द ही आकाश का गुण है ।

“निष्क्रमणम् प्रवेशनमित्याकशस्य लिंगम्” -वै०। अ ० २ । आ ० १ । सू ० २ ०

अर्थात….. जिसमे प्रवेश करना व् निकलना होता है ….वह आकाश का लिंग है ……. अर्थात ये आकाश के गुण है ।

“अपरस्मिन्नपरं युगपच्चिरं क्षिप्रमिति काललिङ्गानि” । -वै०। अ ० २ । आ ० २ । सू ० ६

अर्थात….. जिसमे अपर, पर, (युगपत) एक वर, (चिरम) विलम्ब, क्षिप्रम शीघ्र इत्यादि प्रयोग होते है, इसे काल कहते है, और ये …. काल के लिंग है ।

“इत इदमिति यतस्यद्दिश्यं लिंगम” । -वै०। अ ० २ । आ ० २ । सू ० १ ०

अर्थात……. जिसमे पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ऊपर व् नीचे का व्यवहार होता है ….उसी को दिशा कहते है……. मतलब कि….ये सभी दिशा के लिंग है ।

“इच्छाद्वेषप्रयत्नसुखदुःखज्ञानान्यात्मनो लिंगमिति” -न्याय० अ ० १ । आ ० १ । सू ० १ ०

अर्थात….. जिसमे (इच्छा) राग, (द्वेष) वैर, (प्रयत्न) पुरुषार्थ, सुख, दुःख, (ज्ञान) जानना आदि गुण हो, वो जीवात्मा है…… और, ये सभी जीवात्मा के लिंग अर्थात कर्म व् गुण है ।

इसीलिए……… शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने के कारन………. इसे लिंग कहा गया है…।

स्कन्दपुराण के अनुसार शिवलिंग:

स्कन्दपुराण में स्पष्ट कहा है कि……. आकाश स्वयं लिंग है…… एवं , धरती उसका पीठ या आधार है …..और , ब्रह्माण्ड का हर चीज ……. अनन्त शून्य से पैदा होकर….. अंततः…. उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है ………

यही कारण है कि…… इसे कई अन्य नामो से भी संबोधित किया गया है ……..जैसे कि ….. ज्योतिर्लिंग, अग्नि स्तंभ/लिंग, विद्युत स्फुलिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ/लिंग (cosmic pillar/lingam) … इत्यादि…!

यहाँ यह ध्यान देने योग्य बात है कि…..

ठीक इसी प्रकार…… शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते हैं | क्योंकि…. ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा शिवलिंग में निहित है………! अगर इसे धार्मिक अथवा आध्यात्म की दृष्टि से बोलने की जगह … शुद्ध वैज्ञानिक भाषा में बोला जाए तो….. ….. हम कह सकते हैं कि….. शिवलिंग…. और कुछ नहीं बल्कि….. हमारे ब्रह्मांड की आकृति है. (The universe is a sign of Shiva Lingam.)

यही शिव को हम हिमालय में रमा हुआ मानते हैं …..हम मानव निर्मित पाखण्ड , नियमों कानूनों से नहीं अपितु प्रकृति और ब्रह्माण्ड की शाश्वतता से सीखते है ……जाइए और बताइये पूरी दुनिया को …..
और हर प्रश्नों का जवाब देकर विधर्मियों को चुप और विज्ञान को संतृप्त करिए …..

व्यास जी ने कहा :

तेजोमयं सगुणनिर्गुणमद्वितीयं आनंदकनदपरजिताप्रमेयम

तुलसीदास जी ने कहा :

निराकर्मोंकरमुलंतुरीयं गिरा ज्ञान गोतितमिषम गिरीशं

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Shivesh Pratap

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  • उत्साहवर्धन हेतु धन्यवाद नीलिमा जी,

  • Actually I am also searching it, If everything rotate in universe than there should be two things mandatory one is outer force to rotate and second there must be axis for everything ,which never change or rotate than only the rule every thing will be Chang will complete except the rule it self ,And Lord Shiva never change in any period of time ,he must be axis of Universe ,only scientific proof is required ,and thanks for your artical for clearing some of my doubts

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