Spread the love! Please share!!
गृहस्थाश्रम के गहरे निहितार्थ | वैष्णव परंपरा का सततता मॉडल
गृहस्थाश्रम के गहरे निहितार्थ:
चारित्रिक दोष मानव समाज की समस्याओं के केंद्र में सदा से रहा है। सन्यास, ब्रह्मचर्य आदि के स्याह पक्षों से हिन्दू, बौद्ध और जैन समाज पहले ही परिचित हो चुके थे। शैव और शाक्तों में गृहस्थ परंपरा को सन्यास परम्परा से कमतर माना गया परन्तु कामेच्छा की शांति के लिए वाममार्गी तंत्र साधना विकसित हो गई जहाँ सभी वर्जनाओं को तोड़ तांत्रिक इस क्षेत्र में गृहस्थों से भी आगे निकल कामेच्छाओं की पूर्ति को ही मुक्ति का मार्ग सिद्ध करने लगे। तमाम सिद्धियों की जाग्रति इसी से होने लगी।
बौद्ध कहाँ पीछे रहते, प्रथम बौद्ध संगीति से पहले ही बौद्ध मठों में चरित्र के गंभीर मामले सामने आने लगे तो नियम बनाये गए। महायान शाखा ने शैव शाक्त तांत्रिकों के प्रभाव से तारा के नाम पर एक पूरा वाममार्गी तांत्रिक परंपरा ही प्रारम्भ कर दिया। यह सब कामेच्छाओं की एक सुलभ स्वीकृति हेतु थी। जिनालयों में ऐसे चरितिक मामलों में उन्हें वापस गृहस्थ जीवन में भेज दिया जाता है।
वैष्णव परंपरा का सततता मॉडल:
परन्तु इस समस्या के समाधान पर सबसे सुन्दर कार्य वैष्णव परंपरा ने किया है। सनातन धर्म की वैष्णव मत की गृहस्थ संत परंपरा अधिक व्यावहारिक एवं सफल रही जहाँ गृहस्थ धर्म में रहकर ही आप ईश्वर की आराधना करें और भगवद धाम प्राप्त कर सकते हैं। वैष्णव परंपरा के अभूतपूर्व सफलता के पीछे इस समस्या का समाधान भी एक प्रमुख कारण है।
इस मत के श्रेष्ठ आचार्य शरीर और मन के सामंजस्य को समझते हुए व्यावहारिक रूप से स्वीकारते हैं की शारीरिक आवश्यकताओं एवं मनोनिग्रह के थोथे ज्ञान के बीच कहाँ किस सीमा पर दीवार टूटेगी। इसलिए वैष्णव परंपरा ने गृहस्थ आश्रम को धर्म और ईश्वर की प्राप्ति हेतु तय कर दिया गया। बिना पति-पत्नी के साथ गाँठ जोड़े धर्म कार्य ही सिद्ध नहीं होगा। परिवार निर्माण सामाजिक अनुशासन की पहली प्रक्रिया थी जिसके बाद संसार के लगभग सभी सभ्यताओं में भी इस परिवार निर्माण को ही सामाजिक इकाई माना गया।
सततता से संस्कृति:
परम्पराएं सततता से संस्कृति का रूप लेती हैं, गृहस्थ वही परंपरा है। यद्यपि सन्यास आदि परंपरा में भी गुरु गोरखनाथ आदि ने समय समय पर जन्म लेकर शुचिता को हठयोग से प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त किया है परन्तु समय के साथ यह सभी परम्पराएं कमजोर पड़ गई। कामनाएं / इच्छाएं प्रकृति से संचालित हैं इन्हें दबाने हेतु हठ योग तो करना ही पड़ेगा अन्यथा आज के विश्व में जहाँ इन्हें सामाजिक स्वीकार्यता से बाहर रखा जाएगा वहां आसाराम, गुरमीत जैसे लोग निकलते रहेंगे। इसलिए आवश्यक है की ऐसे लोगों की जगह गृहस्थ गुरुओं की स्वीकार्यता बधाई जाए साथ ही गुरुडम को ईश्वरत्व से न जोड़ा जाए।
इच्छाओं को सामाजिक रूप से दमन:
जब व्यक्ति की इच्छाओं को सामाजिक रूप से दमित किया जाता है तो उसके अलग परिणाम सामने आते हैं जैसे अरब देशों में जानवरों एवं मानव की लाशों के साथ भी दुष्चरित्र करने की बातें सामने आती है। मानव शव के साथ दुष्कर्म के सबसे अधिक मामले पाकिस्तान और अफगानिस्तान में होते हैं ऐसा इसलिए क्यों है यह विचारणीय है। मैंने एक पाकिस्तान का लेख पढ़ा जहाँ कब्रिस्तान के बाहर लोग बारी बारी से पहरा देते है की शव के साथ कोई अपमान न हो।
अश्लील कंटेंट देखे जाने के मामले में इस्लामिक देश सबसे आगे हैं क्यों की वहां महिलाओं की सामाजिक स्वीकार्यता नहीं है और इसलिए सामान्य जीवन शैली में जानवर/ बच्चे स्त्रियों से अधिक सुलभ हैं और उनके साथ अपराध और कुकर्म की घटनाएं आम है।
यह सब बातें बताती है की सही समय पर विवाह एवं गृहस्थ जीवन की परंपरा कितनी आवश्यक है।
Spread the love! Please share!!