कोराना वायरस Coronavirus के संक्रमण के बीच कोरोना वॉरियर्स पर हो रहे हमलों से गुस्साए UP के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्पष्ट कर दिया कि पुलिस तथा मेडिकल टीम पर हमला निंदनीय है।
इसे करने वालों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून NSA (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) के तहत कार्रवाई होगी। यहां यह जानना जरूरी है कि आखिर क्या है राष्ट्रीय सुरक्षा कानून रासुका? जानिए कब बना था ये रासुका कानून? किन नागरिकों को पकड़ा जा सकता है? इसमें कितने महीने जेल में रहने की सजा मिलती है?
नाम से ही स्पष्ट है कि ये कानून जो राष्ट्रीय सुरक्षा में बाधा डालने वालों पर नकेल डालने का काम करे। अर्थात राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम-1980, देश की सुरक्षा के लिए सरकार को अधिक शक्ति देने से संबंधित एक कानून है।
अगर सरकार को लगता कि कोई व्यक्ति कानून-व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने में उसके सामने बाधा खड़ा कर रहा है तो वह उसे रासुका के तहत गिरफ्तार करने का आदेश दे सकती है।
साथ ही, अगर उसे लगे कि वह व्यक्ति आवश्यक सेवा की आपूर्ति में बाधा बन रहा है तो वह उसे एनएसए के तहत गिरफ्तार करवा सकती है।
रासुका यानी राष्ट्रीय सुरक्षा कानून NSA 23 सितंबर, 1980 को इंदिरा गांधी की सरकार के कार्यकाल में अस्तित्व में आया था।
ये कानून देश की सुरक्षा मजबूत करने के लिए सरकार को अधिक शक्ति देने से संबंधित है। यह कानून केंद्र और राज्य सरकार को संदिग्ध व्यक्ति को हिरासत में लेने की शक्ति देता है।
सीसीपी, 1973 के तहत जिस व्यक्ति के खिलाफ आदेश जारी किया जाता है, उसकी गिरफ्तारी भारत में कहीं भी हो सकती है।
अगर सरकार को लगता है कि कोई व्यक्ति उसे देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने वाले कार्यों को करने से रोक रहा है तो वह उसे एनएसए के तहत गिरफ्तार करने की शक्ति दे सकती है।
यदि सरकार को लगता है कि कोई व्यक्ति कानून व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने में उसके सामने बाधा खड़ी कर रहा है को वह उसे हिरासत में लेने का आदेश दे सकती है। इस कानून का इस्तेमाल जिलाधिकारी, पुलिस आयुक्त, राज्य सरकार अपने सीमित दायरे में भी कर सकती है।
राष्ट्रीय सुरक्षा कानून NSA के तहत किसी संदिग्ध व्यक्ति को बिना किसी आरोप के 12 महीने तक जेल में रखा जा सकता है। राज्य सरकार को यह सूचित करने की आवश्यकता है कि NSA के तहत व्यक्ति को हिरासत में लिया गया है।
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत हिरासत में लिए गए व्यक्ति को उनके खिलाफ आरोप तय किए बिना 10 दिनों के लिए रखा जा सकता है। हिरासत में लिया गया व्यक्ति उच्च न्यायालय के सलाहकार बोर्ड के समक्ष अपील कर सकता है लेकिन उसे मुकदमे के दौरान वकील की अनुमति नहीं है।
कानून के तहत उसे पहले तीन महीने के लिए गिरफ्तार किया जा सकता है। फिर, आवश्यकतानुसार, तीन-तीन महीने के लिए गिरफ्तारी की अवधि बढ़ाई जा सकती है। एकबार में तीन महीने से अधिक की अवधि नहीं बढ़ाई जा सकती है।
अगर, किसी अधिकारी ने ये गिरफ्तारी की हो तो उसे राज्य सरकार को बताना होता है कि उसने किस आधार पर ये गिरफ्तारी की है। जब तक राज्य सरकार इस गिरफ्तारी का अनुमोदन नहीं कर दे, तब तक यह गिरफ्तारी बारह दिन से ज्यादा नहीं हो सकती।
अगर अधिकारी पांच से दस दिन में जवाब दाखिल करता है तो ये अवधि 12 की जगह 15 दिन की जा सकती है। अगर रिपोर्ट को राज्य सरकार मंजूर कर देती है तो इसे सात दिनों के भीतर केंद्र सरकार को भेजना होता है।
इसमें इस बात का जिक्र करना आवश्यक है कि किस आधार पर यह आदेश जारी किया गया और राज्य सरकार का इसपर क्या विचार है और यह आदेश क्यों जरूरी है।
ये कानून देश की सुरक्षा मजबूत करने के लिए सरकार को अधिक शक्ति देने से संबंधित है।
रामपुर, मेरठ, मुजफ्फनगर तथा अलीगढ़ में मेडिकल टीम पर हमले की जानकरी मिलने के बाद से सीएम योगी आदित्यनाथ बेहद नाराज हैं। सीएम योगी आदित्यनाथ ने साफ कहा है कि पुलिस तथा मेडिकल टीम पर हमला करने वालों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून NSA(एनएसए) के तहत कार्रवाई होगी।
उन्होंने कहा कि इंदौर तथा कर्नाटक जैसी घटना यूपी में किसी कीमत पर नहीं होनी चाहिए। प्रदेश में गाजियाबाद के साथ अन्य मामले में जो दोषी हैं, उन्हें कानून का पालन करना सिखाओ। प्रदेश सरकार ने आदेश दिया है कि जहां भी अभी तक ऐसे मामले सामने आए हैं, वहां पर तत्काल कार्रवाई हो। इसके साथ ही अब जहां कहीं भी ऐसा मामला होता है तो दोषी को तत्काल गिरफ्तार किया जाए
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