अनेक देशों में पटरियों के ऊपर चलने वाली रेलगाड़ियों में मैग्नेटिक लेविटेशन टेक्नोलॉजी (हिंदी में चुंबकीय उत्तोलन तकनीक) का इस्तेमाल किया जा रहा है| इसके बारे में आज हम चर्चा कर रहे हैं क्यों की यह तकनिकी भविष्य की महत्वपूर्ण आवश्यकता बनने जा रही है|
संयुक्त राज्य अमेरिका के एक एकस्व अधिकार में “मैग्लेव” का इस्तेमाल पहली बार कैनेडियन पेटेंट्स एण्ड डेवलपमेंट लिमिटेड द्वारा “मैग्नेटिक लेविटेशन गाइडेंस ” में किया गया था।
इसमें सुपर कंडक्टर (अतिचालक) चुंबक कार्य में लाये जाते हैं| मैग्लेव, मैग्नेटिक लेविटेशन का संक्षिप्त नाम है जो चुंबकीय आकर्षण और विकर्षण के सिद्धांत पर काम करता है| इस सिद्धांत के तहत जो रेल प्रणाली विकसित की जा रही है, उसकी पटरियां मौजूदा मोनोरेल की पटरियों जैसी होती है| यानी मैग्लेव ट्रेन के ऊपर विद्युत ऊर्जा प्रवाहित करनेवाली कोई तार नहीं बिछायी जाती है और पटरियों के नाम पर सीमेंट की पटरियों में लोहे का गाडर नहीं फंसाया जाता है|
एक सपाट कंक्रीट स्लीपर के बीचों-बीच चुंबकीय आकर्षण और विकर्षण पैदा करनेवाले चुंबक लगाये जाते हैं, जिनके प्रभाव में मैग्लेव ट्रेन पटरियों से कुछ मिलीमीटर ऊपर दौड़ती नहीं, बल्कि तैरती नजर आती है| इस तकनीक का सबसे पहला उपयोग चीन में वर्ष 2004 में शंघाई शहर से एयरपोर्ट तक जाने के लिए (30 किमी लंबे रूट पर) किया गया था| एशिया और यूरोप के अनेक देश इस तकनीक को अपनाने और आगे बढ़ाने में जुटे हैं| भविष्य में किन चीजों में इसका प्रयोग हो सकता है, जानते हैं इससे जुड़े विभिन्न तथ्यों को|
आम तौर पर हाइ-स्पीड रेलों की रफ्तार 180 मील प्रति घंटा यानी करीब 288 किमी प्रति घंटा तक होती है| चूंकि इनसे व्यापक मात्र में फ्रिक्शन और हीट यानी घर्षण और गरमी पैदा होती है, जिस कारण पटरी से काफी शोर निकलता है और इससे मशीनी रूप से काफी ह्रास होने के साथ ऊर्जा का भी नुकसान होता है| ठीक इसके विपरीत, मैगलेव ट्रेनें पटरी से कुछ इंच ऊपर उठते हुए 480 किमी प्रति घंटे से ज्यादा की रफ्तार से दौड़ने में सफल हैं| चूंकि इस तकनीक के इस्तेमाल से चलायी जानेवाली ट्रेनों के संचालन में घर्षण नहीं के बराबर होता है, इसलिए यह ऊर्जा की खपत में कमी लाने के साथ पूरे संचालन लागत को कम कर सकती है|
सुपरकंडक्टिंग मैगलेव ट्रेन्स के सह-आविष्कारक और मैगलेव 2000 कंपनी के निदेशक जेम्स पॉवेल के हवाले से ‘पोपुलरमैकेनिक्स डॉट कॉम’ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि इस तकनीक से ट्रेनों का संचालन हाइ-स्पीड की अन्य तकनीकों के मुकाबले सस्ता है| हाइ-स्पीड रेल से यात्राी को एक मील की यात्रा के लिए जहां एक डॉलर का भुगतान करना पड़ता है, वहीं मैगलेव से चलनेवाली ट्रेनों में यात्राी को महज कुछ सेंट्स में भुगतान करना पड़ता है| एशिया और यूरोप के कई देशों में इस तकनीक से रेलों का संचालन हो रहा है और कई नयी परियोजनाएं शुरू हो सकती हैं|
जापान ने भले ही 2003 में मैगलेव रेलों के मामले में 361 मील प्रति घंटे की स्पीड से दौड़ा कर रिकॉर्ड बनाया, लेकिन आज चीन उससे काफी आगे निकल चुका है और इससे काफी ज्यादा स्पीड से मैगलेव रेल चला रहा है| माना जा रहा है कि इस रेल को यदि वायुरहित ट्यूब्स के भीतर संचालित किया जाये, तो इसकी स्पीड आश्चर्यजनक तौर पर हवाई जहाज से भी ज्यादा यानी हजार मील प्रति घंटे तक जा सकती है|
पिछले कई वर्षो से अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (नासा) स्पेसक्राफ्ट को पृथ्वी की कक्षा से बाहर भेजने के लिए मैगलेव ट्रांसपोर्टेशन की हाइ-स्पीड तकनीक के इस्तेमाल की दिशा में संभावित शोध किया है| जेम्स पॉवेल का मानना है कि वास्तव में इसने इंसान को अन्वेषण कार्यो और कारोबार के लिए ज्यादा आयाम मुहैया कराया है| फिलहाल यह ऐसी चीज है, जिसे ज्यादा महंगी होने की वजह से हम नहीं कर सकते हैं|
पॉवेल और उनके सहयोगियों ने स्पेस लॉन्चिंग टेक्नोलॉजी की दो पीढ़ियों का डिजाइन विकसित किया है| इनमें से पहला है कारगो- जिसे स्पेसक्राफ्ट को 20,000 फीट की ऊंचाई तक लॉन्च करने के लिए सक्षम पाया गया है| दरअसल, इसमें लगे चुंबक एक निर्धारित ट्रैक पर अंतरिक्ष यान को 18,000 मील प्रति घंटे की स्पीड से अंतरिक्ष में लॉन्च कर सकते हैं, जो किसी स्पेसक्राफ्ट के अंतरिक्ष में छोड़े जाने के लिए पर्याप्त रफ्तार मानी जाती है|
हालांकि, इस मामले में उच्च लागत सबसे बड़ी बाधा है| इस पूरे सिस्टम के निर्माण में 20 अरब डॉलर का खर्च होने का अनुमान है| फिलहाल यह रकम भले ही बहुत ज्यादा लगती हो, लेकिन दीर्घावधि में इससे बहुत धन को बचाया जा सकता है| वर्तमान में पृथ्वी की न्यून कक्षा में पेलोड के प्रति किलोग्राम वजन को लॉन्च करने में 10,000 डॉलर का खर्च आता है, लेकिन ‘स्टार ट्रेम’ ने इस खर्च को प्रति किलोग्राम को 50 डॉलर तक करके दिखा दिया है|
जमीन से कई फीट ऊपर उठते हुए ऊपरी चुंबकीय बल से चलनेवाली यह कार कुछ-कुछ ‘स्काइ ट्रान पॉड्स’ की भांति है| प्रत्येक पॉड इलेवेटेड गाइडवे यानी इसके निर्धारित मार्ग पर लगे हुए चुंबकीय बल से संचालित होंगे| एक पॉड में तीन यात्राियों के बैठने की क्षमता हो सकती है और मैगलेव तकनीक का इस्तेमाल करते हुए यह 240 किमी प्रति घंटे की स्पीड पकड़ने में सक्षम है| सैद्धांतिक रूप से स्काइ ट्रान पॉड्स के निर्धारित मार्ग पर यात्राी बिना किसी बाधा के उसमें सवार हो सकता है|
यह सिस्टम मौजूदा उपलब्ध तकनीक पर आधारित है| इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि इससे कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सजर्न नहीं होता और यह तकनीक यात्राियों को जाम की समस्या से भी निजात दिलाने में सक्षम है| भारत के दृष्टिकोण से यह ज्यादा फायदेमंद इसलिए भी है, क्योंकि यह पेट्रोलियम आधारित नहीं है, और इस कारण विदेशी निर्भरता कम होगी| अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (नासा) ने इस तकनीक के प्रति दिलचस्पी दिखायी थी और उन्नत परिवहन सॉफ्टवेयर के मूल्यांकन के लिए 2009 में यूनिमॉडल (स्काइ ट्रान बनाने वाली कंपनी) के साथ साङोदारी की थी|
यह तकनीक न केवल बड़ी मशीनों के लिए उपयोगी है, बल्कि हमारी रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ी चीजों में भी इसका इस्तेमाल मुमकिन है| पंप, जेनरेटर, मोटर और कंप्रेसर जैसे सामान्य औद्योगिक उपकरणों में लैविटेशन टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से बिना फिजिकल कांटेक्ट के मशीनों का संचालन किया जा सकता है यानी मशीन को घुमाया जा सकता है| इसी तरह के बेयरिंग्स का इस्तेमाल मैग्लेव ट्रेनों में ऊर्जा उत्पादन के लिए, पेट्रोलियम रिफाइनरी और मशीन-टूल ऑपरेशन आदि कार्यो में किया जा सकता है| इन बेयरिंग्स को ल्यब्रिकेशन की जरूरत नहीं होगी, जो इसकी बड़ी खासियत मानी जा रही है|
समतल पेट्री डिशों में पैदा की जानी कोशिकाएं मानव शरीर के थ्री-डाइमेंशनल यानी त्रि-वीमिय स्वरूप के लिए हमेशा सर्वाधिक सटीक मॉडल नहीं होती है| यही कारण है कि यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास और राइस यूनिवर्सिटी के मेडिकल शोधकर्ताओं के एक समूह ने इस तकनीक के इस्तेमाल से सेल कल्चर्स को बनाते हुए उसे थ्री-डाइमेंशन आकार में विकसित किया है| आश्चर्यजनक रूप से यह प्रयोग आसान है| शोधकर्ताओं ने मैग्नटिक आयरन ऑक्साइड और गोल्ड नैनोपार्टिकल्स से कैंसर की कोशिकाओं को इंजेक्ट किया, फिर उन कोशिकाओं को नियमित पेट्री डिश में रखा| उसके बाद पेट्री डिश को सिक्के के आकार के चुंबक के ऊपर रख दिया और उसमें कोशिकाओं को बढ़ने के लिए रख दिया|
पाया गया कि चुंबक की सहायता से उसमें कोशिकाओं में वृद्धि हुई है| नियमित पेट्री डिश में कोशिकाओं को पैदा करने के मुकाबले मैगलेव कैंसर कोशिकाओं में ट्यूमर को बनाने में ज्यादा कामयाबी पायी गयी है| ट्यूमर के ये मॉडल शोधकर्ताओं को कैंसर के बेहतर निदान में मददगार साबित हो सकते हैं| शोधकर्ताओं का मानना है कि इस तकनीक के इस्तेमाल से प्रयोगशाला में वास्तविक मानव अंगों के निर्माण में कामयाबी हासिल की जा सकती है|
अंतरिक्ष यात्राियों के लिए भारहीनता की स्थिति उनकी सेहत के संदर्भ में घातक होती है| इस कारण से इनकी हड्डियों दिन-ब-दिन कमजोर होती जाती हैं| इसके अलावा, स्नायु तंत्र और इम्यून सिस्टम भी कमजोर हो जाते हैं| माना जा रहा है कि मैग्नेटिक लेविटेशन का इस्तेमाल करते हुए भारहीनता की स्थिति के प्रभावों को वैज्ञानिक धरती पर समझ सकते हैं| नासा के वैज्ञानिक पिछले कई वर्षो से कीटाणुओं, मेढकों और चूहों को भेजने के लिए सुपरकंडक्टिंग मैग्नेट का इस्तेमाल कर चुके हैं|
प्राणियों के कोशिकाओं में ज्यादातर मात्र जल की होती है, जो कमजोर होती हैं| इसलिए मजबूत चुंबक की मौजूदगी में जल के इलेक्ट्रॉन्स चुंबक के विपरीत हो जाते हैं| इसलिए शोधकर्ताओं को अब इस तकनीक से ज्यादा उम्मीदें हैं| जल में तैरते हुए फलों पर शोध करते हुए उन्होंने उम्मीद जतायी है कि अंतरिक्ष में भारहीनता की समस्या निदान मुमकिन है|
स्टैंडर्ड विंड टरबाइन यानी पवन चक्कियां पवन ऊर्जा का महज एक फीसदी ही इस्तेमाल में लाने योग्य ऊर्जा में तब्दील कर पाती हैं और टरबाइन स्पिन्स में घर्षण की वजह से ज्यादातर सक्षम ऊर्जा का नुकसान हो जाता है| चीन की ग्वांगझू एनर्जी रिसर्च इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं का आकलन है कि पवन चक्कियों के मौजूदा टरबाइनों के मुकाबले मैग्नेटिक लेविटेशन तकनीक से संचालित टरबाइनों के इस्तेमाल से एक फीसदी की बजाय 20 फीसदी ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है| शोधकर्ताओं ने वर्टिकल यानी लंबवत ब्लेडों से टरबाइन का इस्तेमाल किया, जो नियोडायमियम मैग्नेट पर आधारित है| उम्मीद की जा रही है कि टरबाइन के घूमनेवाले हिस्सों में पैदा होनेवाले घर्षण को खत्म करते हुए उसकी स्पीड को बढ़ाया जा सकता है|
मैगलवे टरबाइन से कम लागत में ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है|भारत जैसे देश में इसकी अपार संभावनाएं देखी जा रही हैं, जहां समुद्र के किनारे बहने वाली तेज हवाओं का इस्तेमाल ऊर्जा उत्पादन के लिए किया जा सकता है| इतना ही नहीं, इससे जीवाश्म ईंधन के स्नेतों को खत्म होने से भी बचाया जा सकता है|
आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है की यह लेख आपको अवश्य ही पसंद आएगा |
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