महंत अवैद्यनाथ 12 सितंबर 2014 को गोरखपुर में साढ़े आठ बजे इस मृत्युलोक को त्यागकर शिवलोकवासी हो गए। वह 97 साल के थे। चौथी लोकसभा के लिये गोरखपुर लोकसभा में से हिंदू महासभा से निर्वाचित हुए थे। इसके बाद वो अन्य लोक सभाओं में भी निर्वाचित हुए।
महंत अवैद्यनाथ जी का जन्म ग्राम कांडी, जिला गढ़वाल, उत्तरांचल में श्री राय सिंह बिष्ट के घर हुआ था। आपके बचपन का नाम श्री कृपाल सिंह बिष्ट था और कालांतर में श्री अवैद्यनाथ बनकर भारत के राजनेता तथा गुरु गोरखनाथ मन्दिर के पीठाधीश्वर थे के रूप में प्रसिद्द हुए ।
हिमालय और कैलाश मानसरोवर की यात्रा और साधना से शैव धर्म से गहरे प्रभावित श्री महंथ जी पहली बार 1940 में अपनी बंगाल यात्रा के दौरान मेंमन सिंह (तत्कालीन बंगाल) में श्री निवृति नाथ जी के माध्यम से श्री दिग्विजय नाथ जी से मिले | 8 फरवरी 1942 को आप गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी बन गए | और इस तरह मात्र 23 साल की अवस्था में श्री कृपाल सिंह बिष्ट जी अवैद्यनाथ बनकर विश्वमंच पर एक दैदीव्य्मान अक्षय प्रकाश पुंज के रूप में दैदीव्य्मान हैं |
आजन्म विवादों से दूर रहने वाले, विरक्त सन्यासी, सज्जन, सरल और सुमधुर और मितभाषी व्यक्तित्व के धनी श्री अवैद्यनाथ जी ने श्री रामजन्म भूमि आन्दोलन को मात्र गति ही नहीं दिया अपितु एक संरक्षक की भाँती हर तरह से रक्षित और पोषित किया |
३४ वर्षों तक हिन्दू महासभा और भारतीय जनता पार्टी से जेड़े रहकर हिंदुत्व को भारतीय राजनीति में गति देने वाले और सामाजिक हितों की रक्षा करने वाले श्री अवैद्यनाथ जी ने स्वयं को अवसरवाद और पदभार से स्वयं को दूर रखा और इस तरह उन्होंने राजयोग में भी हठयोग का प्रयोग बखूबी किया | कितने पद स्वयं महाराज जी के चरणों में आकर स्वयं सुशोभित होते थे और आशीष लेते थे |
आज भारतीय दक्षिणपंथी राजनीति का शायद ही कोई राजनेता हो जिसने महाराज जी के चरणों में माथा झुकाकर राजनीति के दिक्दर्शन न सीखा हो चाहे वो स्वयं नरेन्द्र मोदी, अटल जी, आडवानी और राजनाथ सिंह ही क्यों न हों |
दक्षिण भारत के रामनाथपुरम और मीनाक्षीपुरम में अनुसूचित जाति के लोगों के सामूहिक धर्मातरण की घटना से खासे आहत होते हुए महाराज जी ने राजनीति में पदार्पण किया। इस घटना का विस्तार उत्तर भारत में न हो, इसके लिए महत्वपूर्ण कदम उठाये गए और राजनीति में रहकर मतान्तरण का ध्रुवीकरण करने के कुटिल प्रयासों को असफल किया |
आपने 1962, 1967, 1974 व 1977 में उत्तर प्रदेश विधानसभा में मानीराम सीट का प्रतिनिधित्व किया और 1970, 1989, 1991 और 1996 में गोरखपुर से लोकसभा सदस्य रहे।
योग व दर्शन के मर्मज्ञ महंतजी के राजनीति में आने का मकसद हिंदू समाज की कुरीतियों को दूर करना और राम मंदिर आंदोलन को गति देना रहा है। हिन्दू धर्म में ऊंच-नीच दूर करने के लिए उन्होंने लगातार सहभोज के आयोजन किए।
इसके लिए उन्होंने बनारस में संतों के साथ डोमराजा के घर जाकर भोजन किया और समाज की एकजुटता का संदेश दिया। हिंदू समाज की एकता ही उनके प्रवचन के केंद्र में होती थी। वह मूलत: इतिहास और रामचरितमानस का सहारा लेते थे। श्रीराम का शबरी, जटायु, निषादराज व गिरीजनों से व्यवहार का उदाहरण देकर दलित-गरीब लोगों को गले लगाने की प्रेरणा देते रहे।
श्री अवैद्यनाथ जी ने हिन्दू धर्म की आध्यात्मिक साधना के साथ “सामाजिक हिन्दू” साधना को भी आगे बढाया और सामाजिक जन जागरण को अधिक महत्वपूर्ण मानकर हिन्दू धर्म के सोसल इंजीनियरिग पर बल दिया | श्री योगी आदित्यनाथ जी के “हिन्दू युवा वाहिनी” जैसे युवा संगठन की प्रेरणा भी कहीं न कहीं इसी सोसल इंजीनियरिग की प्रेरणा रही थी |
महंत अवेद्यनाथ ने वाराणसी व हरिद्वार में संस्कृत का अध्ययन किया था। वह संस्कृत से शास्त्री थे। महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद से जुड़ी शैक्षणिक संस्थाओं के अध्यक्ष के अलावा वे मासिक पत्रिका योगवाणी के संपादक रहे। योग व दर्शन पर लगातार लिखा।
गोरक्षपीठ से जुड़ी चिकित्सा, शिक्षा और सामाजिक क्षेत्रों में काम कर रही करीब तीन दर्जन संस्थाओं के अध्यक्ष एवं प्रबंधक थे। महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद से जुड़ी शैक्षणिक संस्थाओं के अध्यक्ष के अलावा वे मासिक पत्रिका योगवाणी के संपादक रहे। योग व दर्शन पर आजन्म लिखते रहे |
“न किसी का अहित किया न सोचा आजीवन” के सिद्धांतों पर विश्वास करने वाले महंथ जी हर हिन्दू जनमानस के ह्रदय में सदा सदा के लिए एक धर्मरक्षक की भाँती जीवित रहेंगे और प्रेरणा देते रहेंगे |
ब्रम्हलीन योगी श्री अवैद्यनाथ जी को श्रद्धांजलि …….अश्रुपूरित नेत्रों से |
Mahanth Avaidynath.
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