” निहारु को देख कर जो ब्राह्मण अपना व्रत तोड़ते थे वो “नेहरु” थे “
जब किसी संस्कृति का पतन होता है तो कोई एक व्यक्ति अपने क्षणिक स्वार्थ हेतु मर्यादा को तोड़ता है और उसको मिलने वाले त्वरित लाभ और सम्मान के कारण ऐसे लोगों की संख्या बढ़ जाती है| फिर ये संख्या इतनी प्रभावी हो जाती है जो किसी संस्कृति का विनाश कर दे|
क्षत्रिय राजाओं में “जयचंद” जैसे तमाम लोगों ने हिंदुत्व की संप्रभुता पर आघात किये परन्तु यह आघात उतना प्रभावी नहीं था जितना की तब हुआ जब धर्म के मूल ब्राह्मण जाति ने धर्म से विमुख होकर “चाटुकारिता” के नए कीर्तिमान गढ़ दिए |
दिल्ली में मुग़ल शासन का प्रभाव था और उत्तर भारत उसकी जद में था | कुछ राजाओं ने अकबर जैसे लोगों की सरपरस्ती स्वीकार कर लिया की वो दुसरे राजाओं से आगे बन जाएँ और उनपर अपना रोब झाड सकें | ब्राह्मण भी इस कार्य में पीछे नहीं थे | दरबार संस्कृति, गीत संगीत और माधुर्य में राजदरबार में सम्मान पाना उनके लिए किसी पुरस्कार से कम नहीं था | उस समय में कुछ अवसरवादी लोग संस्कृत साहित्य में मुगलों के प्रसंसा काव्य लिखने लगे|
“दिल्लीश्वरो वा जगदीश्वरो वा मनोरथान् पूरयितुं समर्थः”
पंडित “जगन्नाथ” ऐसे लोगों में ही एक थे | उन्होंने लिखा की “दिल्लीश्वरो वा जगदीश्वरो वा मनोरथान् पूरयितुं समर्थः” |
दरअसल उस समय हिन्दू समाज में राजा को श्री विष्णु का अंश मानते थे और ब्राह्मण राजा के दर्शन करके ही “पारण” करते थे इस तरह राजा प्रातः काल अपने “राम झरोखे” पर बैठते थे और प्रजा उनका दर्शन करके आशीष लेती थी | यह जनता से जुड़ने की एक सामान्य प्रक्रिया होती थी |
अब चाटुकारों ने मुगलों को प्रसन्न करने के लिए ऐसे मन्त्र लिखे जिसमे मुगलों को ही राजा होने के कारन विष्णु पद दे दिया गया | अब क्या था जो ब्राह्मण मुगलों का दर्शन कर अपना व्रत भंग करते थे उन्हें “राम झरोखा” शब्द साम्प्रदायक लगा तो उन्होंने इस शब्द की जगह अरबी फारसी में “निहारु” रख दिया यही शब्द संस्कृत में “निहारका” रूप में विराजमान है |
अब निहारु को देख कर जो ब्राह्मण अपना व्रत तोड़ते थे वो “नेहरु” थे | यहीं से भारत को अंधकार में धकेलने वाली निकृष्ट संस्कृति का निर्माण हुआ|
यद्यपि पंडित जगन्नाथ को ब्राह्मण जाति से बाहर कर दिया गया और अंतिम समय में अपने गलत कर्मों के प्रायश्चित में उन्होंने जल समाधी ले लिया था | परन्तु आज इनकी वजह से पैदा हुए लाखों “नेहरुओ” का क्या होगा जो मनीष तिवारी, राहुल गांधी, पुण्यप्रसून बाजपेयी, सोमनाथ मुखर्जी,ममता बनर्जी बनकर हिन्दू समाज की जड़ें खोदने में तल्लीन हैं |
श्यामा प्रसाद मुखर्जी, भानु प्रताप शुक्ल, बलराज मधोक जैसे लोग हासिये पर हैं और अधोमुखी वर्णशंकरों की जमात मलाई काट रही है | क्या यही न्याय है ???
इतनी छुब्धता, क्रोध, कुंठा और दया आती है की आज ब्राह्मण समाज ऐसे ही लोगों को “ब्राह्मण गौरव” बताकर अपनी पीठ ठोंकता है | दूसरी बात की “जवाहर लाल” जैसे निक्रिष्ट लोग जिन्होंने पुरे ब्राह्मण समाज को कलंकित किया वो प्रधानमंत्री इसलिए ही बना क्यों की तत्कालीन राजनीती में ब्राह्मण बहुत अधिक थे और उन्होंने क्षत्रियों को भी अपने पक्ष में लामबंद किया और पटेल के विरुद्ध जातिवाद का खेल खेलकर सरदार पटेल की जगह नेहरु को प्रधानमंत्री बनाया गया|
कमीने सत्ता की मलाई काट रहे हैं और त्यागी बलिदान हो गये……….आज ब्राह्मणों की महान परम्परा में आदर्श ब्राह्मणत्व और हिन्दू संस्कृति का पुनर्संचार बहुत आवश्यक है |
यह हम सभी हिन्दू समाज को गिरेबां में झाँकने का समय ………………….
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Tight slap ....to congress
I feel proud on you shivesh.