वानस्पतिक नाम: ग्रेविया हिर्सटा (grewia-hirsuta)
संस्कृत नाम: नागबला, गुडशर्करा
हिंदी नाम: गुलशक्री, गुदखंडी
उपयोग: पत्तियां, जड़, फुल
नागबला टिलिएसी कुल का पौधा है| जो समुद्रतल से 3500 फीट के ऊपर ऊंचाई पर क्षैतिज क्षेत्र में उपलब्ध है।
इसका उपयोग तंत्रिका दुर्बलता, स्मृति और वात विकारों में होने में किया जाता है।
नागबला गुरु, स्निग्ध व पिच्छल है जो स्वाद में मधुर व कषाय रस वाली औषधि है।
मसूढ़ों की सूजन:
नागबला के पत्तों का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन 3 से 4 बार कुल्ला करें। रोजाना प्रयोग करने से मसूढ़ों की सूजन व मसूढ़ों का ढीलापन खत्म होता है।
बवासीर:
नागबला के पत्तों को पानी में उबालकर उसे अच्छी तरह से मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े में उचित मात्रा में ताड़ का गुड़ मिलाकर पीयें। इससे बवासीर में लाभ होता है।
मानसिक विकार:
नागबला सामान्य विकृति और मांसपेशी के रोगों, व मानसिक रोगों में एक उपयोगी टॉनिक है।
तंत्रिका या नर्व के विकार:
यह एक बेहतरीन रसायन व श्रेष्ठ वाजीकारक है जो वात और पित्त के दोषों को दूर करने वाला है। जो व्यक्ति के शरीर में सभी धातुओं का सम्वर्धन करता है।
मूत्र संबंधी विकार:
नागबला के फुल और कोमल फल चीनी के साथ लेने से लाभ होता है रोजाना इसे 2 से 3 बार ले सकते है|
हृदय विकारों में लाभकारी:
नागबला का उपयोग हृदय रोग में होता है नागबला की जड़ और अर्जुन वृक्ष (टर्मिनलिया) की छाल का मिश्रण मिलाकर दूध के साथ प्रयोग किया जाता है। इस नुस्खे के एक महीने के प्रयोग से यह गर्मी की बीमारी, खांसी और डिस्पेनिया को भी समाप्त कर देता है
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