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“तंगैल एयर ड्राप” जिसने लिखी 90000 पाकिस्तानी सैनिकों के आत्मसमर्पण की पटकथा

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1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम अपने चरम पर था और भारतीय सेना पश्चिमी मोर्चे पर अपने विजय पथ पर अग्रसर हो रही थी| साथ ही साथ अब तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान यानी बांग्लादेश में भी भारतीय सेना, पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ा रही थी | ऐसी दशा में भारतीय सैनिकों यह साथ-साथ भारतीय कूटनीति भी काम कर रही थी और हर मोर्चे पर हारा हुआ पाकिस्तान अब यह जान चुका था कि वास्तव में ढाका पर नियंत्रण जरूरी है नहीं तो भारतीय सेनायें इसे अपने प्रभाव में ले लेंगी| इसके लिए दिसंबर के पहले हफ्ते में ही पाक में यह रणनीति बनाई गई की पाक सेना को ढाका की ओर कूच करना चाहिए और वहां स्थिति मजबूत करनी चाहिए |

इस कार्य को अंजाम देने के लिए पाकिस्तान की 93वीं ब्रिगेड पूर्वी पाकिस्तान कि उत्तर दिशा से अब ढाका की ओर बढ़ने लगी और इससे पहले कि पूरी पाक सेना ढाका में पहुंचे, भारतीय सेना को किसी भी स्थिति में इस ब्रिगेड को वहां पहुंचने से रोकना था और इसके लिए भारतीय कंट्रोल रूम में एक बेहद ही स्ट्रेटेजिक रणनीति बनाई जो वास्तव में उस समय के लिहाज से बहुत ही जोखिम भरी हुई थी परंतु इसने युद्ध् की दिशा ही बदल दिया | इस ऑपरेशन का नाम था “ऑपरेशन कैक्टस लिली (Operation Cactus Lilly)”

जब मानिकगंज-ढाका राजमार्ग हुआ कब्जे में:

उत्तर से ढाका की ओर बढ़ती हुई पाकिस्तान की पूरी ब्रिगेड को रोकने के लिए अब भारतीय सेना के पास एक ही विकल्प था मानिकगंज-ढाका मार्ग पर मैमन सिंह जिले में पड़ने वाले जमुना नदी के पूंगली ब्रिज को अपने कब्जे में लेना जिससे कि पाकिस्तान की 93 ब्रिगेड आगे ही ना बढ़ सके परंतु इसके लिए भारतीय सेना के पास बहुत कम समय था और वहां पर हमारी थल सेना की मराठा लाइट इंफेंट्री के जवान मौजूद थे परंतु पूरी ब्रिगेड की शक्ति से कम थे इसलिए भारतीय सेना को वहां पर तुरंत ही अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए और जवानों की आवश्यकता थी और इसके लिए भारतीय सेना के जाबांज ऑफिसर मेजर जनरल जेएफआर जैकब ने तंगैल में भारतीय सैनिकों को एयरड्राप की रणनीति बनाई|

लेफ्टिनेंट कर्नल कुलवंत सिंह पन्नू

इस ड्रॉप से मराठा लाइट इंफेंट्री के साथ नए सैनिकों के जुड़ जाने से हमारी स्थिति बहुत मजबूत हो जाती और हम जम कर पाकिस्तानी ब्रिगेड का सामना कर सकते और उन्हें ढाका पहुंचने में रोक पाने में सफल हो सकते थे| ऑपरेशन कैक्टस लिली (Operation Cactus Lily) के इस अत्यंत ही साहस पूर्ण कार्य के लिए 11 दिसंब 1971 को शाम 4.30 बजे भारतीय सेना के पराशुट रेजिमेंट के 50वीं पराशूट ब्रिगेड के दूसरी बटालियन के 700 पैराट्रूपर को एक बहादुर और जांबाज लेफ्टिनेंट कर्नल कुलवंत सिंह पन्नू के नेतृत्व में वहां वायुसेना के 11 और 48 स्क्वाड्रन के AN-12, C-119S, 2 Caribous और Dakotas विमानों से तंगैल में ड्राप कराया गया|

लगभग ढाई घंटे में ही इस भारतीय टुकड़ी ने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया और मराठा लाइट इंफेंट्री के साथ मिलकर अपनी मजबूती बना लिया और इस तरह मेमन सिंह में भारतीय सेना ने इतनी अजेय स्थिति हासिल कर लिया की पाकिस्तानी ब्रिगेड के कितने सैनिक ब्रिगेड छोड़ कर भाग खड़े हुए |

डमी ड्राप थी मुख्य नीति:

भारत-पाकिस्तान के 71 के युद्ध के समय अमेरिका, ब्रिटेन और रूस भी अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य पर बेहद सक्रिय थे और उनकी खुफिया एजेंसियां लगातार इन देशों समर्थन भी कर रही थी| तंगैल ड्रॉप की घटना के साथ ही बीबीसी ने अपने बुलेटिन में लगभग 10000 सैनिकों के एयर ड्राप की सूचना दी|

तंगैल एयर ड्राप (Tangail Airdrop) में सबसे मुख्य बात थी कि इस रणनीति के तहत हजारों की संख्या में डमी भी ड्राप की गई और उस समय अमेरिका एवं पाकिस्तान के जासूसों के द्वारा पाकिस्तान को यह खबर मिली कि लगभग 10 हजार भारतीय सैनिकों को तंगैल में ड्राप कराया गया है जबकि वास्तविकता यह थी की लगभग 700 सैनिकों को ड्राप कराया गया था और डमी ड्राप इसलिए कराया गया जिससे कि शत्रु सेना पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाया जा सके और सबसे अच्छी बात यह रही कि यह मनोवैज्ञानिक दबाव बहुत काम आया और यही कारण है कि आत्म समर्पण के लिए जेएफआर जैकब का दबाव पाकिस्तानी सेना पर और अधिक प्रबल हो गया |

यह घटना कितनी महत्वपूर्ण थी इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 11 दिसंबर की इस घटना के बाद 16 दिसंबर को ही पाकिस्तान की सेना ने अपने 90000 सैनिकों के साथ नियाजी के नेतृत्व में ढाका में जनरल अरोड़ा के सामने सरेंडर पत्र पर दस्तखत कर दिए|

इस बेहद स्ट्रैटेजिक एवं महत्वपूर्ण कार्य को सफलतापूर्वक अंजाम देने के लिए भारतीय सेना के सेना नायक लेफ्टिनेंट कर्नल कुलवंत सिंह पन्नू को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया और साथ ही साथ 2 पैरा को भी युद्ध सम्मान दिया गया |

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Shweta Pratap

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