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अश्लीलता, बाजारवाद की गिरफ्त में गरबा और डांडिया उत्सव: एक समालोचना

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अश्लीलता, बाजारवाद की गिरफ्त में गरबा और डांडिया उत्सव: एक समालोचना

‘गरबा’ शब्द का आध्यात्मिक महत्त्व व व्युत्पत्ति:

गुजरात में मातृशक्ति का प्रतीक मानकर नवरात्रों में अनेक छिद्रों वाले मिट्टी के कलश में रखा दीपक पूजा जाता है । स्त्री की सृजनात्मकता का प्रतीक मानकर नौ दिन पूजे जानेवाले ‘दीपगर्भ’ के ‘दीप’ शब्द का लोप होकर गर्भ-गरभो-गरबो अथवा ‘गरबा’ शब्द प्रचलित हुआ ।

सांस्कृतिक अधिष्ठान वाला पारंपरिक गरबा नृत्य:

पहले नवरात्रि की पहली रात्रि को देवी के निकट छोटे-बडे सछिद्र घट एक दूसरे पर रखे जाते थे । ऊपर वाले घट में मिट्टी का दिया रखकर उसमें चार ज्योति जलाकर इस दीये को अखंड जलाया जाता था व इस दीये के चारों ओर नृत्य के फेरे लगाए जाते थे ।

गरबा के समय दो प्रकार के लोकनृत्य होते थे – पुरुषों द्वारा गोलाकार खडे होकर समूह गीत गाते हुए तालियां बजाते हुए सादे पद न्यासों से किए नृत्यको  गरबी व स्रियों द्वारा नाजुक नाजुकता से किए गए नृत्यको ‘गरबा’ कहते हैं ।

गरबा के समय अंबा, कालिका, रांदलमां आदि देवियों के स्तुति गीत गाए जाते थे । ऐसे समय वीर रस का निर्माण करने वाले नगाडा, शहनाई जैसे वाद्यों का प्रयोग किया जाता था ।

कुछ दिनों उपरांत कृष्ण लीला, संत रचित पद, ऋतुवर्ण ने अथवा सामाजिक विषयों पर आधारित गीत रचनाआेंं पर नृत्य होने लगे । तालियां व चुटकियों की अपेक्षा खंजीर, मंजिरा, दीप इत्यादि का उपयोग नृत्यके समय किया जाने लगा ।

गरबा अर्थात देवी की आराधना:

देवीमाता ने दुष्टों का संहार कर हमारा रक्षण किया । हम उनका ॠण तो नहीं चुका सकते; इसीलिए उन्हें प्रसन्न करने के लिए यह नृत्य किया जाता है । इस नृत्यका अर्थ है, कीर्तन, भजन के समान देवी को प्रसन्न करनेके लिए की जाने वाली आराधना ।

गरबा नृत्यमें उपयोग में लाई जानेवाली डांडिया देवी के हाथ के खड्ग का प्रतीक है ।

हम आपकी आराधना कर रहे हैं, यह देवीको बतानेके लिए इनका उपयोग किया जाता है ।

डांडिया नृत्य यह योद्धा के आविर्भाव में किया जाना चाहिए । डांडिया का उपयोग तलवार के समान करना चाहिए ।

यह नृत्य पेश करते समय देवीके स्तुति गीत गाएं । आज कल खेला जानेवाला डिस्को-डांडिया डांडियाका विकृत प्रकार है ।

गरबा के मूल उद्देश्य में विकृति लाने वाला आधुनिक गरबा व डांडिया:

शास्त्र विसंगत:

कृष्ण लीला, संतों द्वारा रचित काव्यों पर आधरित व पारंपरिक वाद्योंं के स्वरों में गरबा खेला जाना आवश्यक है; परंतु आजकल फिल्मी गीतों पर आधारित व आधुनिक वाद्योंं के कर्णकर्कश आवा़ज में गरबा खेला जाता है ।

अश्लील अंग विक्षेप:

गरबा नृत्य करते समय शरीर का एक विशिष्ट लय में हिलना आवश्यक है । परंतु आजकल चित्र विचित्र हावभाव कर नाचने का शौक पूरा किया जाता है । ऐसे नृत्यमें मस्ती का प्रमाण ही अधिक होने के कारण एक-दूसरेको टकराना, जान बूझकर शरीर स्पर्श करना, ऐसे प्रकार होते हैं । डांडिया नृत्य में अपने हाथ के डांडिया से दूसरे के डांडिया को धीरेसे स्पर्श करना होता है; परंतु आज डांडिया को जोरों से पीटा जाता है ।

पावित्र्यहीनता:

गरबा देवीकी आराधना है; इसलिए गरबा नृत्य करते समय पवित्रता बनाए रखना आवश्यक है । किसी देवताकी पूजा करते समय जो भाव होता है, वही भाव यह नृत्य करते समय होना आवश्यक है । तथापि आज गरबेके लिए स्त्री-पुरुष तडक-भडक एवं उत्तेजक वेशभूषा कर आते हैं जिससे धार्मिक उद्देश्यकी अपेक्षा अन्य विषयोंपर ही अधिक चर्चा की जाती है । गरबा खेलने वालों में मद्यपान करने वालों का बडे पैमाने में समावेश होता है । नृत्य करने वाले अधिकांश चप्पल पहनकर ही नृत्य करते हैं । इस प्रकार इस उत्सवकी पवित्रता नष्ट होती जा रही है ।

लैंगिक आकर्षण:

आजकल युवक-युवतियों में लैंगिक आकर्षण के कारण एक-दूसरेके सान्निध्य में आनेके माध्यम के तौर पर गरबा की ओर देखा जााता है । इससे अनैतिकता बढ रही है । गरबा समाप्त होने के उपरांत भी लडके-लडकियां अपने-अपने घर जाने की अपेक्षा रास्तेपर ही भटकते हैं । अनेक पुलिस अधिकारियों के अनुसार, गरबाके बहाने बाहर रहने वाले ये लडके-लडकियां मद्यपान कर रातभर बाहर घूमते हैं व रास्तों पर हंगामा करते हैं ।

मुंबई तथा गुजरातमें नवरात्रोत्सवके उपरांत आनेवाले कुछ माहमें कुवांरी लडकियों के गर्भपात की संख्या में बडी मात्रा में वृदि्ध होती है, ऐसी जानकारी एक गुजराती समाचार-पत्र में प्रसिद्ध हुई थी ।

गरबा का व्यावसायिक स्वरूप:

एक पैसे कमाने का तरीका:

गरबा के बहाने निधि संकलन के लिए कुछ स्थानोंपर कॉलनियों में फ्लैट के आकार के अनुसार, संक्षेप में वहां के लोगों के स्तरानुसार जबरन पैसे मांगे जाते हैं|

एक वर्ष गुजरात के वापी जिले में एक प्रतिषि्ठत कॉलनीमें ‘थ्री-रूम किचन फ्लैट’ (3BHK) में रहने वाले प्रत्येक व्यक्तिसे १५०० रुपए लिए व ‘टू-रूम किचन फ्लॅट’ (2BHK) में रहनेवाले प्रत्येक व्यक्ति से १००० रुपए लिए गए । ‘डिस्को डांडिया’ (Disco Dandiya) के एक दिन की एंट्री फीज न्यूनतम १०० रुपयोंं से लेकर १००० रुपए तक होती है ।

मुंबई जैसे बडे शहर में गरबा नृत्य के लिए बडे-बडे फिल्मी अभिनेताओं को बुलाया जाता है । इस नृत्यमें दूसरों को सहभागी होने के लिए अधिक रकम के टिकट रखे जाते हैं ।

इस माध्यम से गरबा आयोजकों की कुल आमदनी 25 से 30 करोड रुपए होती है । गलत मार्ग से पैसा कमाने वाले अनेक लोग गरबा की ओर अर्थार्जन की दृष्टि से ही देखते हैं ।

लोगोंको ‘जुआरी’ बनाने वाले गरबा आयोजक:

कुछ स्थानों पर ‘गरबा’,‘ डांडिया’, ‘डिस्को डांडिया’ खेलने के लिए हजार रुपए तक के प्रवेशपत्र लेनेवाले भाग्यवान विजेता को लॉटरी पर पांच-दस हजारकी भेंट वस्तुएं दी जाती हैं ।

झटपट धनवान बननेकी समाजकी मानसिकताका लाभ उठाकर गरबा आयोजक अपनी जेब भरते हैं । अनेक गरबा आयोजक गरबा व डांडिया प्रेमियों को आकर्षित करनेके लिए महंगी मोटरगाडियों के पुरस्कार का लालच भी दिखाते हैं । इससे अप्रत्यक्ष रूप से समाज में जुआ खेलनेकी मानसिकता को खाद डाला जाता है ।

अनाचारों पर रोक लगाने की असमर्थता:

विकृत गरबा की यह बेला हिंदू धर्म के वटवृक्ष को घेर रही है । नवरात्रोत्सवके दौरान होनेवाले यह अनाचार हिंदू धर्म की परंपरा, संस्कृति को नष्ट करनेका प्रयास कर रहे हैं । यह सब होते हुए इन अनाचारों पर जिन्होंने निर्बंध लगाना चाहिए, वे हमारे राज्यकर्ता मात्र लोकानुनय करने पर ही अपना सत्तास्थान अटल रहेगा, ऐसा सोचकर इन सब प्रकारों को अनदेखा कर उलटा प्रोत्साहन देनेका काम कर रहे हैं ।

ध्वनिप्रदूषण, नैतिकताके लिए बनाए गए सर्व नियम इस कालावधि में एक ओर रख दिए जाते हैं । इस काल में अनैतिक व्यवसाय जोर पकडते हैं । यह सब बहुश्रुत होते हुए भी राज्यकर्ता इन सभी बातोंकी ओर अनदेखा करते हैं । और फिर इन सब बातों में न्यायप्रणाली को हस्तक्षेप करना पडता है !

आधुनिक गरबा से हमें क्या साध्य हो रहा है ?

आधुनिक गरबा का यह विदारक स्वरूप देखकर उसमें से हम क्या साध्य कर रहे हैं, यह प्रश्न निर्मित होता है ।

देवता-तत्त्वका लाभ नहीं होता !

गरबा का वास्तविक प्रयोजन है, हमारे द्वारा देवी की उपासना हो तथा हम पर देवीकी कृपा दृष्टि हो । परंतु आजकल उत्सव के नाम पर चलने वाले अनिष्ट प्रकारों से गरबा का उद्देश्य निःसंशय सफल नहीं होता ।

तमोगुणमें वृदि्ध:

गरबोत्सव के बहाने होने वाले श्रद्धालुओं की लूट, गरबा नृत्यमें होने वाले अश्लील आचरण इत्यादि के कारण उत्सवकी पवित्रता नष्ट होने के साथ ही तमोगुणमें बडी मात्रा में वृदि्ध हो रही है ।

आगामी पीढी की हानि:

हमें बच्चों पर धर्मनिष्ठा एवं राष्ट्रनिष्ठा के संस्कार करने का स्वर्णिम अवसर त्यौहारों व उत्सवों के माध्यम से प्राप्त होता है । परंतु आज के गरबोत्सव द्वारा आगामी पीढी पर ऐसे संस्कार कर ही नहीं सकते; उलटा इस माध्यमसे उन पर कुसंस्कार हो सकते हैं ।

नवरात्रोत्सव आदर्श होने के लिए हमारे प्रयास ही धर्मपालन होगा:

आजकल नवरात्रोत्सवको प्राप्त दयनीय स्वरूप आपके सामने रखनेका उद्देश्य है, हमारे धर्म की आंखोंके सामने होनेवाली हानि का आपको एहसास हो और वह हानि रोकने के लिए आपसे कुछ कृति हो पाए ।

याद रखें, आप भी इस समाजका ही एक हिस्सा हो । यदि यह हानि रोकने के लिए आपने कुछ नहीं किया, तो इस हानि से निर्माण होने वाले पाप में आपका भी सहभाग हो सकता है ।

धर्मसंबंधी कृति करनेका अर्थ है धर्मपालन करना, तथा धर्मजागृति के लिए प्रयास करना भी वर्तमान काल में आवश्यक धर्मपालन ही होगा । इसलिए आज प्रत्येक व्यक्तिको अपने-अपने स्तरपर उत्सव को आदर्श स्वरूप देनेके लिए प्रयत्नरत होना होगा ।

नवदुर्गा के उत्सवमें सात्विकता बढाएं ।
शक्ति की उपासना से राष्ट्र एवं धर्म की उन्नति साधें ।

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Shivesh Pratap

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