राष्ट्र मातृभूमि भारत पर संस्कृत श्लोक सुभाषितानि
नमस्कार दोस्तों, इस पोस्ट में मैं भारत माता पर संस्कृत श्लोक ( Sanskrit Shloka about India ) का संकलन प्रस्तुत कर रहा हूँ। अपने राष्ट्र, मातृभूमि के गौरव/ महत्त्व के बारे में सुनकर किसके रोंगटे नहीं खड़े हो जाते हैं।
आइये राष्ट्र के महत्व को बताते हुए संस्कृत के विविध श्लोकों से अपनी ज्ञान यात्रा को और सुगम करें;
ॐ भद्रमिच्छंत ऋषयः स्वर्विदस्त्पो दीक्षामुपनिषेदुराग्रे ।
ततो राष्ट्रं बलमोजश्च जातं तदस्मै देवा उपसन्नमंतु ॥
प्रकाशमय ज्ञान वाले ऋषियों ने सृष्टी के आरम्भ में लोक कल्याण की इच्छा करते हुए दीक्षापूर्वक तप किया उससे राष्ट्र, बल और ओज की उत्पत्ति हुई इस (राष्ट्र) के लिए देवगण उस (तप और दीक्षा) को अवतीर्ण कर (राष्ट्रिकों अर्थात देशवाशियों में) संस्थित अथवा, समस्त प्रबुद्ध जन इस राष्ट्रदेवता की उपासना करें ।
हिमालयं समारभ्य यावत् इंदु सरेावरम् ।
तं देवनिर्मितं देशं हिंदुस्थानं प्रचक्षते ॥
हिमालय पर्वत से शुरू होकर हिन्द महासागर तक फैला हुआ यह ईश्वर निर्मित देश है जिसे “हिंदुस्थान” कहते हैं ।
यस्मिन् देशे न सन्मानो न प्रीति र्न च बान्धवाः ।
न च विद्यागमः कश्चित् न तत्र दिवसं वसेत् ॥
जिस देश में सम्मान नहीं, प्रीति नहीं, संबंधी नहीं और जहाँ विद्या मिलना संभव न हो वहाँ एक दिन भी नहीं ठहरना चाहिए ।
Sanskrit Slokas on Patriotism
कलहान्तानि हर्म्याणि कुवाक्यान्तं च सौहृदं ।
कुराजान्तानि राष्ट्राणि कुकर्मान्तं यशो नृणां ॥
झगड़ों से परिवार टूट जाते हैं। गलत शब्द के प्रयोग करने से दोस्ती टूट जाती है। बुरे शासकों के कारण राष्ट्र का नाश होता है । बुरे काम करने से यश दूर भागता है।
अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी॥
हे लक्ष्मण! यह स्वर्णमयी लंका मुझे अब भी अच्छी नहीं लगती। जन्मदात्री माँ और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर होते हैं।
वन्दे नितरां भारतवसुधाम्।
दिव्यहिमालय-गंगा-यमुना-सरयू-कृष्णशोभितसरसाम् ॥
देवभूमि हिमालय, गंगा, यमुना, सरयू कृष्णा और कई नदियों के साथ चमकने वाली भारत की भूमि को नमन।
त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत् ।
ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत् ॥
कुल के हितार्थ एक का त्याग करना, गाँव के हितार्थ कुल का, देश के हितार्थ गाँव का और आत्म कल्याण के लिए पृथ्वी का त्याग करना चाहिए ।
गायन्ति देवाः किल गीतकानि धान्यास्तु ये भारतभूमिभागे ।
स्वर्गापवर्गास्पदहेतुभूते भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात ॥
देवता गीत गाते हैं कि स्वर्ग और अपवर्ग की मार्गभूत भारत भूमि के भाग में जन्मे लोग देवताओं की अपेक्षा भी अधिक धन्य हैं। (अर्थात् मोक्ष-कैवल्य के मार्ग स्वरूप भारत-भूमि को धन्य-धन्य कहते हुए देवगण इसका शौर्य-गान गाते हैं। यहां पर मानव जन्म पाना देवत्व पद प्राप्त करने से भी बढकर है।
वीरकदम्बैरतिकमनीयां सुधिजनैश्च परमोपास्याम् ।
वेद्पुराणैः नित्यसुगीतां राष्ट्रभक्तैरीड्याम् भव्याम् ॥
वह (भारत माता) सुंदर दिखने के लिए योद्धाओं की एक माला पहनती है, जो श्रेष्ठ विद्वानों द्वारा पूजी जाती है। वेद और पुराणों के माध्यम से प्रतिदिन गाई जाती है, देशभक्तों के साथ जो भव्य दिखती है, ऐसे (मां भारती) को नमन।
उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् ।
वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र संततिः ॥
जो समुद्र के उत्तर में है और हिमालय के दक्षिण में है , उस देश का नाम भारत है और उसमे रहने वाले लोग भारतीय हैं।
एत देश प्रसूतस्य सकाशादग्र जन्मनः ।
स्वं स्वं चरित्र शिक्षेरन् पृथिव्यां सर्व मानवाः ॥
प्राचीन काल में, इस देश (भारत) में जन्में लोगों के सामीप्य द्वारा (साथ रहकर) पृथ्वी के सब लोगों ने अपने-अपने चरित्र की शिक्षा ली।
Sanskrit Shloka about India Bharat Mata Nation with Hindi Meaning
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोहम्।
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते॥
हे वात्सल्यमयी मातृभूमि, तुम्हें सदा प्रणाम! इस मातृभूमि ने हमें अपने बच्चों की तरह स्नेह और ममता दी है। इस हिन्दू भूमि पर सुखपूर्वक मैं बड़ा हुआ हूँ। यह भूमि महा मंगलमय और पुण्यभूमि है। इस भूमि की रक्षा के लिए मैं यह नश्वर शरीर मातृभूमि को अर्पण करते हुए इस भूमि को बार-बार प्रणाम करता हूँ।
प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता इमे सादरं त्वां नमामो वयम् ।
त्वदीयाय कार्याय बध्दा कटीयम् शुभामाशिषं देहि तत्पूर्तये ॥
अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिं सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत् ।
श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्ण मार्गं स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत्॥
हे सर्व शक्तिमान परमेश्वर, इस हिन्दू राष्ट्र के घटक के रूप में मैं तुमको सादर प्रणाम करता हूँ। आपके ही कार्य के लिए हम कटिबद्ध हुए है। हमें इस कार्य को पूरा करने किये आशीर्वाद दे। हमें ऐसी अजेय शक्ति दीजिये कि सारे विश्व मे हमे कोई न जीत सकें और ऐसी नम्रता दें कि पूरा विश्व हमारी विनयशीलता के सामने नतमस्तक हो। यह रास्ता काटों से भरा है, इस कार्य को हमने स्वयं स्वीकार किया है और इसे सुगम कर काँटों रहित करेंगे।
समुत्कर्षनिःश्रेयस्यैकमुग्रं परं साधनं नाम वीरव्रतम् ।
तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्रानिशम्॥
विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर् विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम्।
परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्॥
ऐसा उच्च आध्यात्मिक सुख और ऐसी महान ऐहिक समृद्धि को प्राप्त करने का एकमात्र श्रेष्ट साधन उग्र वीरव्रत की भावना हमारे अन्दर सदेव जलती रहे। तीव्र और अखंड ध्येय निष्ठा की भावना हमारे अंतःकरण में जलती रहे। आपकी असीम कृपा से हमारी यह विजयशालिनी संघठित कार्यशक्ति हमारे धर्म का सरंक्षण कर इस राष्ट्र को परम वैभव पर ले जाने में समर्थ हो।
Sanskrit Slokas on Desh Bhakti
अत्र ते वर्णयिष्यामि वर्षम् भारत भारतम्। प्रियं इन्द्रस्य देवस्य मनो: वैवस्वतस्य च।
पृथोश्च राजन् वैन्यस्य तथेक्ष्वाको: महात्मन:। ययाते: अम्बरीषस्य मान्धातु: नहुषस्य च।
तथैव मुचुकुन्दस्य शिबे: औशीनरस्य च। ऋषभस्य तथैलस्य नृगस्य नृपतेस्तथा।
अन्येषां च महाराज क्षत्रियाणां बलीयसाम्। सर्वेषामेव राजेन्द्र प्रियं भारत भारतम्॥
(हे महाराज धृतराष्ट्र,) अब मैं आपको बताऊंगा कि यह भारत देश सभी राजाओं को बहुत ही प्रिय रहा है। इन्द्र इस देश के दीवाने थे तो विवस्वान् के पुत्र मनु इस देश से बहुत प्यार करते थे। ययाति हों या अम्बरीष, मन्धाता रहे हो या नहुष, मुचुकुन्द, शिबि, ऋषभ या महाराज नृग रहे हों, इन सभी राजाओं को तथा इनके अलावा जितने भी महान और बलवान राजा इस देश में हुए, उन सबको भारत देश बहुत प्रिय रहा है।
आ ब्रह्यन् ब्राह्मणो बह्मवर्चसी जायताम्
आ राष्ट्रे राजन्यः शूर इषव्यः अतिव्याधी महारथो जायताम्
दोग्ध्री धेनुर्वोढानड्वानाशुः सप्तिःपुरंध्रिर्योषा जिष्णू रथेष्ठाः सभेयो
युवाअस्य यजमानस्य वीरो जायतां निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु
फलवत्यो न ओषधयः पच्यन्ताम् योगक्षेमो नः कल्पताम्।
हमारे देश में ब्राह्मण समस्त वेद आदि ग्रंथों से दैदिव्य्मान उत्पन्न हों। क्षत्रिय, पराक्रमी, शस्त्र और शास्त्रार्थ में निपुण और शत्रुओं को अत्यंत पीड़ित करने वाले उत्पन्न हों। गौ, दुग्ध देने वाली और बैल भार ढोने वाला हो। घोड़ा शीघ्र चलने वाला और स्त्री बुद्धिमती उत्पन्न हो। प्रत्येक मनुष्य विजय प्राप्ति वाले स्वाभाव वाला, रथगामी और सभा प्रवीण हो। इस यज्ञकर्ता के घर विद्या, यौवन सम्पन्न और शत्रुओं को परे फेंकने वाला पुत्र उत्पन्न हो। हमारे देश के मेघ इच्छा-इच्छा पर बरसें और सभी औषधियां (अन्न) फल वाले होकर पकें। हमारे राष्ट्र के प्रत्येक मनुष्य का योग और क्षेम उसके उपभोग हेतु पर्याप्त हो।
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‘विविधता मे एकता ‘पर कोई श्लोक होगा तो देखे