क्या साकार की पूजा व्यर्थ है या निराकार की पूजा श्रेष्ठ ?

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॥ सगुण ब्रह्म भी निर्गुण ब्रह्म का ही पूरक है …….विरोधी नहीं ॥

॥ क्या साकार की पूजा व्यर्थ है या निराकार की पूजा श्रेष्ठ ॥

सगुण की उपासना भी ब्रह्म की साधना का एक सोपान है उदाहरण स्वरुप यदि कोई बच्चा अपने मन में यह संकल्प करें कि मैं एक मिसाइल टेक्नोलॉजी का इंजीनियर बनना चाहता हूं तो वह बन सकता है परंतु यदि ऐसा स्थान पर वह अत्यधिक जटिल से लगने वाले लक्ष्य की जगह यह ठान ले कि वह डॉक्टर अब्दुल कलाम बनेगा एवं उनके जीवन तथा कार्यों का अनुसरण करने लगे तो भी वह मिसाइल टेक्नोलॉजी का इंजीनियर बन जाएगा ।

अंतरिक्ष विज्ञानी बनाने का लक्ष्य एक तरह से अमूर्त ब्रह्म के रूप में है एवं इस लक्ष्य काकोई सीधा एवं सरल मार्ग नहीं दिख रहा है जिसे एक बच्चा आसानी से फॉलो कर सके क्योंकि अंतरिक्ष विज्ञानी बनाने वाले संसार में हजारों लोग हैं और उनके अपने हजारों मार्ग होंगे इस तरह से एक साधक जब निर्गुण ब्रम्ह के साधना पर चलता है तो उसको हजारों लोगों के हजारों मार्गों में भ्रांति उत्पन्न हो जाती है परंतु जब एक बच्चा यह ठान लें कि मुझे अब्दुल कलाम के जीवन को फॉलो करना है या एक साधक यह ठान ले कि मुझे भगवान राम के जीवन को फॉलो करना है तो वह आसानी से अपने लक्ष्य को बिना भ्रमित हुए एक मार्ग पर चलकर प्राप्त कर सकता है ।

जैसे-जैसे समाज और जटिल होता गया उसी तरह समय के साथ हमारे ऋषि-मुनियों संतों ने भी साधना पथ को जटिलताओं के अनुरूप और सरल बनाने का प्रयास किया और इसी के फलस्वरूप निर्गुण ब्रह्म की साधना की कठिनता उसे एक आम आदमी को बचाकर सगुण ब्रह्म की भक्ति की ओर प्रेरित किया गया जोकि निर्गुण की साधना से बहुत ही आसान है तथा साधना की परिभाषा भी यही है कि जो सध जाए यानी जिसका पालन हो जाए तो इस प्रकार पहले व्यक्ति को सगुण ब्रह्म की साधना करनी चाहिए और उस सगुण ब्रह्म की साधना के बाद उसे निर्गुण की ओर बढ़ना चाहिए इसे आप किसी प्रोजेक्ट का प्रथम तथा द्वितीय फेज मानकर चल सकते हैं ।

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यदि आप ध्यान की प्रक्रिया का एक छोटा सा अभ्यास अपने कमरे में करें और पहले ही दिन आंखें बंद करके ध्यान करने की कोशिश करें तो आप पाएंगे कि आप ध्यान न करके इधर-उधर की तमाम चीजों के बारे में कब सोचने लगे पता ही नहीं चला परंतु इसकी जगह पर क्रमशः पहले हफ्ते आप अपने सामने की दीवार पर एक काला बिंदु बनाकर खुली आंखों से ध्यान करते हुए सिर्फ उस बिंदु को निहारे तो धीरे-धीरे समय के साथ आप पाएंगे कि आपका मन आपकी इंद्रियों के साथ पहले तो उस काले बिंदु पर केंद्रित हुई और जब आपकी इस साधना का प्रथम चरण भलीभांति पूरा हो जाए तो उसके बाद आप उस काले बिंदु का ध्यान बंद आंखो से करके भी अपने आपको ध्यान की अवस्था में रख सकते हैं ठीक इसी उपरोक्त उदाहरण की तरह ही हमारे सगुण ब्रह्म की उपासना भी है जो एक काले डॉट की तरह आपको साधना के पहले चरण में मदद करता है और जब आप सगुण ब्रह्म की उपासना में निपुण हो जाते हैं तो उसके बाद निर्गुण ब्रह्म की उपासना बहुत ही आसानी से हो जाती है ।

फिर राम तो मानस में “वेद धर्म रक्षक भगवाना” हैं
और सूर्य सगुण साधना में प्रकृति का वह ध्यान बिंदु ।

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Shivesh Pratap

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