महावीर चक्र फक्र-ए-हिंद जनरल हनूत सिंह राठौर | General Hanut Singh Rathore Life

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जनवरी 1987 में एक दिन भारतीय सेना के संकट मोचक और बेहद प्रतिभाशाली माने जाने वाले जनरल हनूत सिंह का फोन घनघना उठा, सेवा में तैनात सिपाही ने बताया की प्रधानमंत्री राजीव गाँधी का फ़ोन है और वह बात करना चाहते हैं| सेना में बाल ब्रम्हचारी और संत जनरल के नाम से मशहूर हनूत सिंह ने सिपाही को आदेश दिया की उनसे कहो की पूजा से निवृत होने के बाद मैं उनसे बात करूँगा|

बस यह बात राजीव गाँधी को इतनी बुरी लगी की जब 31 मई 1988 को थलसेनाध्यक्ष कृष्णास्वामी सुंदरजी के सेवा निवृत्ति के बाद जब सबसे सीनिअर, प्रतिभाशाली, 71 की लड़ाई के इस हीरो और परमवीर चक्र से सम्मानित एक शानदार सर्विस रिकॉर्ड के बावजूद जनरल हनूत सिंह को दरकिनार कर उनके जूनियर विश्वनाथ शर्मा को 1 जून 1988 को भारत का अगला थलसेनाध्यक्ष बना दिया|

श्री हनूत सिंह सचमुच में एक वैरागी व्यक्ति थें और उन्होंने जीवन भर निष्काम कर्म किया इसलिए उन्हें इस बात से कोई फर्क भी नहीं पड़ा| ऐसे महापुरुष का जीवन हमेशा ही इस देश को प्रेरणा देता रहेगा | आइये जानते हैं उनका प्रेरणादाई जीवन;

जनरल हनूत सिंह का बचपन:

राजस्थान की वीर प्रसूता भूमि ने जहां महाराणा प्रताप और वीर दुर्गादास जैसे वीरों को जन्म दिया, वहीं भक्त शिरोमणि मीराबाई की भी जननी है। वीर हनूत सिंह में राजस्थानी मिट्टी के दोनों गुण मौजूद थे।

‘‘संत जनरल’’ के नाम से मशहूर और परमविशिष्ट सेवा मेडल व महावीर चक्र से सम्मानित ले. जनरल हनूत सिंह का जन्म 6 जुलाई 1933 को ले. कर्नल अर्जुन सिंह के घर जसोल बाड़मेर राजस्थान में हुआ था। वह देश के पूर्व विदेश एवं रक्षामंत्री जसवंत सिंह के चचेरे भाई भी थे।

ले. जनरल हनूत सिंह का सैनिक जीवन:

देहरादून के कर्नन ब्राउन स्कूल से पढ़ाई पूरी करने के बाद वह 1949 में एनडीए में दाखिल हुए। वहीं से वे भारतीय सेना में सैकण्ड लेफ्टिनेंट पद पर नियुक्त हुए।

वह अपने संयमी दृष्टिकोण, मानसिक कुशाग्रता , अनुशासन, बुद्धि और चरित्र के लिए NDA में ही सुविख्यात हो गए थे| अपनी एक अलग आध्यात्मिक वृत्ति और जीवन के प्रति दृष्टिकोण ने उन्हें जीवन भर सबसे अलग रखा| अपनी अध्यात्मिक निष्ठा के कारण आप जीवन भर अखंड ब्रम्हचारी थे|

एक कैडेट में इतने असामान्य गुण के साथ वह पोलो के टॉप कैडेट थे इसलिए उन्हें “पोलो ब्लू” से नवाजा गया था|

दिसंबर 1952 में, उन्हें पुना हार्स, एक प्रतिष्ठित कैवलरी रेजिमेंट में कमीशन दिया गया था, जिसने जुलाई 1817 में अपनी स्थापना के बाद से चार विक्टोरिया क्रॉस जीते थे। उन्होंने भारतीय सेना की 17 पूना हॉर्स की कमान संभाली, जिसने बसंतर के युद्घ में पाकिस्तान की आठ आर्म्ड ब्रिगेड का पूरी तरह सफाया कर दिया था।

65 के बैटल ऑफ़ असल उत्तर के सेना नायक:

65 की लड़ाई में बैटल ऑफ़ असल उत्तर (आसल उत्ताड़ का युद्ध) में 264 पाकिस्तानी पैटन टैंकों के साथ पाकिस्तान ने अपनी पूरी कमांड उतार दिया और उनके टैंको ने आगे बढ़ते खेमकरण पर कब्ज़ा कर लिया और ऐसे समय में द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद के सबसे बड़े टैंक की लड़ाई में पकिस्तान को रोकने की जिम्मेदारी हरबक्श सिंह, गुरबख्स सिंह और हनूत सिंह पर था | इन तीन सेना नायकों ने अपने 135 शर्मन और सेंचुरियन टैंकों के साथ पाकिस्तान को रोकने का जो चक्रव्यूह बनाया उसमें फंस कर पाकिस्तान ने अपने 100 टैंक गवां दिए | और पाकिस्तान का “ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम” विफल कर दिया|

इस लड़ाई में वीर अब्दुल हमीद इसी टीम का हिस्सा थे जिन्होंने अकेले 7 टैंक तोड़ डाले |

71 की लड़ाई में फिर हीरो बनें हनूत सिंह:

फिनेंट कर्नल(तत्कालीन) हनूत सिंह राठौड़ ने इस युद्ध में 47 इन्फेंट्री ब्रिगेड को कमांड किया था,इस युद्ध में जिन क्षेत्रों में सबसे घमासान युद्ध हुआ था उनमे शकरगढ़ भी एक था| लेफिनेंट कर्नल(तत्कालीन) हनूत सिंह की 47 इन्फेंट्री ब्रिगेड को शकरगढ़ सेक्टर में बसन्तर नदी के पास तैनात किया गया था,पाकिस्तान ने इस नदी में बहुत सी लैंड माइंस लगा रखी थी…

16 दिसंबर 1971 के दिन हनूत सिंह की कमांड में सेना ने नदी को सफलता पूर्वक पार किया,पाकिस्तान ने दो दिन लगातार टैंको से हमले किये, लेफिनेंट कर्नल(तत्कालीन) हणूत सिंह ने अपनी सुरक्षा की परवाह किये बिना एक खतरनाक सेक्टर से दूसरे खतरनाक सेक्टर में जाकर सेना का नेतृत्व और मार्गदर्शन किया। इस युद्ध में इनके नेतृत्व में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के 48 टैंक ध्वस्त कर दिए,और पाकिस्तान का आक्रमण विफल कर दिया।

उन्होंने आश्चर्यजनक वीरता, नेतृत्व और कर्तव्यपरायणता का परिचय दिया और इस विजय के फलस्वरूप हणूत सिंह को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया.……

युद्ध में हनूत सिंह के कौशल से प्रभावित पाकिस्तान की यूनिट ने भारत की इस रेजीमेंट को फक्र-ए-हिंद के टाइटल से नवाजा जो कि भारतीय सेना के इतिहास में पहली बार किसी विरोधी सेना की ओर से नवाजा गया था। युद्ध में उन्हें बहादुरी दिखाने के लिए भारतीय सेना ने महावीर चक्र से नवाजा था।

इसी युद्ध में हनूत सिंह के जूनियर अरुण खेत्रपाल की शहादत हुई और उन्हें मरणोंपरान्त परम वीर चक्र से नवाजा गया |

यहाँ पढ़ें: अरुण खेत्रपाल की गौरव गाथा

भारत के 12 सर्वश्रेष्ठ सैन्य कमांडर में एक हैं जनरल हनूत सिंह:

मेजर जनरल वी के सिंह ने अपनी पुस्तक “लीडरशिप इन द इंडियन आर्मी: बायोग्राफी ऑफ ट्वेल्व सोल्जर्स” में जनरल हनूत सिंह को भी शामिल किया है|

किताब में उद्घृत है;

“as a result, qualities like professionalism, personal rectitude and total dedication to the Regiment and the service became distinctive hallmarks of its officers…”

During his time, The Poona Horse, as Hanut himself writes in his wonderfully descriptive and elegant book on its history, developed a spirit over and above its professionalism and élan, which can be described in one word camaraderie a spirit of brotherhood, caring, feeling, and belief that soldiers seek above all.

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जनरल हनूत FLAG HISTORY OF ARMOURED CORP के अधिकृत लेखक थे। इन्हे परम विशिस्ट सेवा मेडल PVSM भी दिया गया था ।  31 जुलाई 1991 में वे रिटायर हो गए थे|

सेवामुक्त होने के बाद बने विरक्त सन्यासी:

आजाद भारत के 12 प्रमुख जनरलों में शामिल और भारतीय सेना में जनरल हनूत के नाम से विख्यात जनरल सिंह 1991 में रिटायर होने के बाद सांसारिक मोह त्याग कर देहरादून में राजपुर रोड स्थित शिवबाला योगी आश्रम परिसर स्थापित कर साधना करने लगे थे।

देहरादून के बाल शिवयोगी से प्रभावित होकर उन्होंने उनसे दीक्षा ली। इसके बाद वह वहीं बस गए। वह वर्ष में दो महीने के लिए जोधपुर के बालासती आश्रम में आया करते थे। वहां भी वह परिवार से अधिक बात नहीं करते और अपनी आध्यात्मिक साधना में ही लीन रहते थे।
रेजीमेंट में गुरूदेव के नाम से पहचाने जाने वाले हनूत सिंह आजीवन बाल-ब्रहमचारी रहे। रेजीमेंट में सभी लोग उन्हें गुरूदेव कहते हुए सम्मान देते थे। उन्होंने शादी नहीं की। उनसे प्रभावित होकर उनकी यूनिट के अधिकतर अधिकारियों ने भी शादी नहीं की।

उनका बचपन से ही आध्यात्म व योग की ओर रूझान था। शराब तथा मांस के वह सख्त खिलाफ थे। सेना में रहते हुए जनरल हनूत सिंह अध्यात्म ध्यान से जुड़े रहे, लेकिन कभी सिपाही के धर्म पर आस्थाओं को हावी नहीं होने दिया। सेना में आज भी वे महान सैन्य रणनीतिकार के तौर पर याद किए जाते हैं।

संत सैनिक का महाप्रस्थान:

 

11 अप्रेल 2015 को सिंह देहरादून में कुर्सी पर बैठे-बैठे ध्यानयोग की मुद्रा में ही समाधि में प्रवेश कर गए। सिंह की अंत्येष्टि हरिद्वार के वीआइपी घाट पर की गई। कनखल स्थित श्मशान घाट पर लेफ्टिनेंट जनरल हनूत सिंह की चिता को उनके भांजे नृपेंद्र सिंह ने मुखाग्नि दी।

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Shivesh Pratap

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