|| मातृपितृ चरणकमलेभ्यो नमः||
बड़े शहरों के वातानुकूलित कमरों में शांति का शोर और इस ग्रामीण जीवन की “नीरव शांति” की दिव्यता में अंतर पता चल रहा है | किसी बुद्ध को बुद्धत्व के लिए ऐसी ही नीरव शांति चाहिए |
भौतिक सुख के अभाव का सुख:
रात ८ से १०.३० तक गाँव के काली मंदिर पर भोजपुरी में कथा सुनने का सौभाग्य मिला | भावना के अश्रुओं में सराबोर …..बाली वध, जटायु उद्धार, सीता हरण एवं हनुमत मिलन …..सत्य ही उस आनंद के सामने “मल्टीप्लेक्स” की कृतिमता लजा रही थी ???
भोजन में निर्दोष सुस्वादु “सील लोढे” से पिसे मसाले की सब्जी, सिरका में भीने प्याज के साथ जो भोजन हुआ वो …..कलकत्ता के श्याम बाजार और विधान सरानी के गोलगप्पे तथा दिल्ली के कुल्चों की दरिद्रता का बखूबी बखान कर रहे थे |
एक नया “यक्ष प्रश्न” की जब जहाज के पक्षी को जहाज पर ही आना है तो ये दर-बदर किसके लिए……एक बनावटी झूठे समाज के लिए !!!!
व्यथित, व्याकुल, चिंतित, मग्न ………………..शिवेश