बैटल आफ बसंतर : जब 22 साल के भारतीय की शहादत से लाल हो गई वसंतर नदी ।
1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध मेँ पश्चिमी पाकिस्तान मेँ भीषण युद्ध चल रहा था ओर पाकिस्तान ने कश्मीर को पंजाब से काटने के लिए शकरपुर बल्ज में बसंतर नदी पर अपनी शक्ति को इतना मजबूत कर लिया था कि यह लगभग अजेय दुर्ग सा था ।
अखनूर का वह भीषण युद्ध:
अखनूर के इलाके मेँ लडती भारतीय सेना के लिए आगे बढ़ना बहुत मुश्किल था । भारतीय सेना के पास एक ही उपाय था की बसंतर नदी को पार करके पाकिस्तान की सीमा मेँ घुसकर सीधा शत्रु सेना हमला करे । पाकिस्तान ने इसी नदी के पुल के एक मील के दायरे मेँ तमाम बारुदी सुरंगें बिछा रखी थी । 13 केवलरी के 10 शत्रु टैंक पाकिस्तान की ओर से तेजी से बसंतर नदी की तरफ आगे बढ़ रहे थे और सामने थे 17 पूनाहार्स के तीन टैंक जिसमें कर्नल मल्होत्रा, लेफ्टीनेंट अहलावत ओर सेकंड lieutenant अरूण क्षेत्रपाल भारतीय सेना का नेतृत्व कर रहे थे ।
3 भारतीय टैंको के भीषण आक्रमण से 7 पाकिस्तानी टैंक ध्वस्त हो गए परंतु कर्नल मल्होत्रा और लेफ्टिनेंट अहलावत बहुत ही बुरी तरह से जख्मी हो गए । अब नेतृत्व की पूरी जिम्मेदारी इस बाईस साल के नौजवान अरुण क्षेत्रपाल पर आ गया और 3 पाकिस्तानी टैंको से घिरे क्षेत्रपाल को वापस लौटने का आदेश मिला परंतु अरूण ने “मेरी बंदूक चल रही है और मेँ वापस नहीँ लौटूंगा, आउट” कहकर वायरलेस बंद कर दिया और दुश्मन के ३ टैंकोँ पर अकेले ही पिल पडे ।
देखते ही देखते उन्होने दो पाकिस्तानी टैंकों को अकेले ही ध्वस्त कर दिया और तभी एक गोला उनकी टैंक पर गिरा और अरुण क्षेत्रपाल के दोनोँ पैर कट गए । ड्राइवर पराग सिंह ने टैंक वापस लेने कहा परंतु उसके बाद भी अरूण ने ड्राइवर को मैदान मेँ डटे रहने का आदेश दिया और शत्रु का आखिरी टैंक अरुण क्षेत्रपाल से मात्र 100 मीटर की दूरी पर था और इस रण बांकुरे ने मशीन गन और गोलों की बरसात जारी रखा ।
अरुण क्षेत्रपाल के जीवन की यह पहली लडाई थी:
अरुण क्षेत्रपाल ने मरने के अंतिम मिनट के भीतर एक ऐसा प्रहार किया कि शत्रु का अंतिम टैंक भी नष्ट हो गया ओर शहादत के साथ क्षेत्रपाल के अद्भुत शौर्य और पराक्रम ने भारत को एक एेसी जीत दिलाई जिससे की 71 युद्ध का पासा ही पलट गया।
बसंतर की जीत से पाकिस्तान के हौसले पस्त हो गए और पाकिस्तान ने युद्ध पर पूरा नियंत्रण खो दिया । भारतीय सेनाओं ने इस भीषण युद्ध पाकिस्तान के 45 टैंकों के परखच्चे उडा दिए ओर दस पर कब्जा कर लिया बदले में भारत के मात्र दो टैंक ही तबाह हुए ।
अरुण क्षेत्रपाल के जीवन की यह पहली लडाई थी ओर उनहोने इंडियन मिलिट्री अकादमी मेँ अभी अपना बायोस का कोर्स भी पूरा नहीँ किया था ।
पाकिस्तानी सेना के मेजर AH अमीन ने अपनी किताब मेँ लिखा हे कि पाकिस्तानी सेना के १३ लांसर का अटैक भारतीय सेना को बहुत महंगा पड़ सकता था परंतु एक अकेले बहादुर अरुण क्षेत्रपाल के कारण खतरा टल गया ।
इस अद्भुत शोर्य ओर पराक्रम के लिए 17 पूना हार्स के सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल को भारत सरकार ने सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया ।
नेशनल डिफेंस एकेडमी यानी राष्ट्रीय रक्षा अकादमी ने श्री अरुण खेतरपाल के नाम पर अपने परेड ग्राउंड का नाम खेत्रपाल ग्राउंड रखा है ।
Salute to u Arun ………..
जय हिंद अरूण आप को सत सत नमन