क्या सनातन धर्म परिवार में शनि की पूजा उचित है ??
जब धर्म, डर और व्यक्तिगत स्वार्थों का रास्ता बन जाए तब ऐसे दुर्गुण समाज में पैदा होते हैं
संभ्रांत एवं विचारणीय हिन्दू धर्म अब “नकारामत्मक विचारों” का एक अड्डा बनता जा रहा है | शनि पूजा के दिन शनि-साईं मंदिरों (लूट और डकैती का स्थान) पर उमड़ती भीड़ इसी का प्रमाण है |
|| हिन्दू धर्म में कौन पूज्य है ?? ||
हिन्दू कभी “भय प्रेरित” होकर भगवान् की पूजा नहीं करता क्यों की वेदों में भी भगवान् वो है जो अभय करता है “यतो तह समीहसे ततो नो अभयं कुरु “|
विभीषण, रावण को पूज्य मानकर प्राण रक्षा कर सकता था परन्तु अभय की प्राप्ति तो राम के चरणों में मिली |अंगद और सुग्रीव को भी राम पद में अभय की प्राप्ति हुई |
जिस धर्म में ब्राह्मण विद्वत्ता ने सत्यनिष्ठ की पराकाष्ठा में मातृहंता श्री परशुराम को पूजा के योग्य नहीं माना तो शनि जैसे निम्न कोटि देवता पूज्य कैसे ??
शनि की पूजा आज के समाज में साढ़ेसाती, अढ़ैया और शनि कोप के भय में लोग कर तो रहें है इसके पीछे जो साधारण हिन्दुओं का मनोविज्ञान है वो यह की “हम बहुत दुखी हैं, समस्याग्रस्त हैं” शायद शनि का प्रकोप हो |
मेरे प्रिय भोले हिन्दू भाइयों जिस देश में भगवान् ने अवतार लेकर बनवास लिया, पंचवटी से लंका तक कठिनाइयां झेली, १६ साल की उम्र में ऋषियों की सेवा और राक्षसों के विनाश को उन्मुख होना पड़ा, लक्ष्मण जी को शक्ति का आघात लगा, उस देश में उस धर्म के हिन्दू आज डरपोक बन कर अधोपूज्य की पूजा कर रहे हैं |
एक ओर हमारा हिन्दू समाज अपने आदर्श और महान देवों की पूजा करता था अब दूसरी ओर निकृष्ट देवताओं की पूजा क्यों ?? मै बड़े विश्वास के साथ कहता हूँ की शनि पूजा हमारे वैष्णव धर्म में कहीं भी उचित नहीं है | काशी के संकट मोचन मंदिर की महान परंपरा से लेकर अयोध्या मथुरा तक ऐसे किसी शनि पूजा की जगह हनुमत पूजा को आदर्श माना गया है |
हाँ, शनि के लिए दान का विधान अवश्य है और शनि के लिए दान करना, शनी पूजा से भिन्न है |
|| हनुमत भक्ति से शनि प्रसन्न होता है ||
गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी बड़ी जिम्मेदारी से कहा है
“”””और देवता चित्त न धरइ, हनुमत सेई सर्व सुख करइ |”””
बजरंग बली हनुमान जी, शिवजी के 11वें अवतार माने जाते हैं। इनकी माता अंजनी ऋषि गौतम और अहिल्या की पुत्री थीं। इनके पिता केसरी सुमेरु पर्वत के राजा थे। मंगलवार को हनुमान जी का जन्म माना गया है। इसलिए मंगलवार के दिन श्रद्धालु हनुमान चालीसा और सुन्दरकाण्ड का पाठ करते हैं। इसके लिए यह कथा है।रामायण काल में जब हनुमान जी माता सीता को ढूंढ़ते हुए लंका में पहुंचे, तो उन्होंने वहां शनिदेव को उल्टा लटके देखा। कारण पूछने पर शनिदेव ने बताया कि ‘मैं शनि देव हूं और रावण ने अपने योग बल से मुझे कैद कर रखा है।’ तब हनुमान जी ने शनिदेव को रावण के कारागार से मुक्ति दिलाई।शनि देव ने हनुमान जी से वर मांगने को कहा। हनुमान जी बोले, ‘कलियुग में मेरी अराधना करने वाले को अशुभ फल नही दोगे।’ तभी से शनिवार को हनुमान जी की पूजा की जाती है।शनि की शांति के सरल उपाय : शनिदेव के प्रकोप से बचने के लिए ये उपाय करने चाहिए। जैसेः सरसों का तेल,लोहा, काली वस्तुओं जैसे वस्त्र, कम्बल, कोयला, काली उड़द, काले तिल, काले कपड़े आदि का शनिवार के दिन शनि के निमित्त दान करना चाहिए। नीलम रत्न, लोहे का छल्ला और रुद्राक्ष धारण करने से भी शनि शान्त होता है।
|| शनि कौन है ??||
ज्योतिष ग्रंथों में उत्तरा कालमित्रा के अनुसार शनि के निम्नलिखित विशेषताएं है-
1. खराब स्वास्थ्य 2. अवरोध 3. रोग 4. शत्रुता 5. दुःख 6. मृत्यु 7.घरेलू नौकर 8. गधे 9. बहिष्कृत 10. दीर्घायु 11. हिजड़ा 12. पवन 13. बुढ़ापा 14. गंदे कपड़े 15. काला रंग 16.रात को पैदा होने वालों के लिए पिता का द्योतक 17. शुद्र 18. ब्राह्मण जो तामसिक गुण रखते हैं 19. बदसूरत बाल 20. यम की पूजा 21नीचे की तरफ देखना 22.झूठ बोलना 23. चोरी और कठोर हर्दय 24. तेल 25. शिकार 26. लंगड़ापन | यह गहरे आघात का कारक माना जाता है।
ग्रहों के मंत्रिमंडल में शनि नौकरों का प्रतिनिधित्व करता है।
इसका रंग काला है और इसका लिंग नपुंसक (हिजड़ा) है।
यह पंचभूत या पांच तत्वों में हवा का प्रतिनिधित्व करता है।
यह शूद्र वर्ण के अंतर्गत आता है और इसमें तामसिक गुणों की प्रबलता है।
शनि की दुर्बल व लंबी काया तथा मधु जैसे रंग की आंखें है,
स्वभाव तूफानी है और बड़े दाँत हैं, अकर्मण्य, लंगड़ा है तथा रुखे व खुरदरे बाल हैं।
शनि एक साल का प्रतिनिधित्व करता है।
यह कसैले स्वाद का प्रतिनिधित्व करता है
यह पश्चिमी दिशा में मजबूत है।
यह बुध और शुक्र के लिए अनुकूल है तथा सूर्य, चन्द्रमा और मंगल ग्रह के लिए प्रतिकूल है।
यह बृहस्पति को तटस्थ मानता है।
राहू और केतु दोनों शनि को मित्र के रूप में मानते हैं।
मित्रों बताइए “नीलाम्बुज श्यामल कोमलांगम” वाले श्री राम जी और विष्णु पूज्य हैं या उपरोक्त वर्णित हिजड़ा, अकर्मण्य और लंगडा|
|| शनि पूजा का विधान कहाँ है ||
मित्रों शनि जैसे निम्न कोटि देवता सिर्फ ज्योतिष और तांत्रिक साधना (पूजा नहीं) के लिए प्रयोग में आते हैं | इनका प्रयोग सधे हुए तांत्रिक, मान्त्रिक और ज्योतिष ही करते हैं | वैष्णव धर्म में सिर्फ दान का विधान है न की पूजा का |
दशरथ कृत शनि स्तोत्र
नमः कृष्णाय नीलाय शितिकंठनिभाय च |नमः कालाग्नि रूपाय कृतान्ताय च वै नमः ||
नमो निर्मोसदेहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च | नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ||
नमः पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णे च वै पुनः | नमो दीर्घाय शुष्काय कालद्रंष्ट नमोस्तुते||
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरिक्ष्याय वै नमः| नमो घोराय रौद्राय भीषणाय करालिने ||
नमस्ते सर्व भक्षाय बलि मुख नमोस्तुते|सूर्य पुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ||
अधोदृष्टे नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोस्तुते| नमो मंद गते तुभ्यम निंस्त्रिशाय नमोस्तुते ||
तपसा दग्धदेहाय नित्यम योगरताय च| नमो नित्यम क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नमः||
ज्ञानचक्षुर्नमस्ते ऽस्तु कश्यपात्मजसूनवे |तुष्टो ददासि वै राज्यम रुष्टो हरसि तत्क्षणात ||
देवासुर मनुष्याश्च सिद्धविद्याधरोरगा | त्वया विलोकिताः सर्वे नाशं यान्ति समूलतः||
प्रसादं कुरु में देव वराहोरऽहमुपागतः ||
उपरोक्त में स्पष्ट रूप शनि को कालाग्नि रूपाय,कृतान्ताय,शुष्कोदर, भयाकृते,कालद्रंष्ट, कोटराक्षाय, दुर्निरिक्ष्याय, सर्व भक्षाय, अधोदृष्टे,क्षुधार्ताय, अतृप्ताय कहा गया है क्या इस जैसे अलंकार हमारे पूज्य देवता के होंगे | श्री दशरथ जी ने शाकटभेद योग के विरुद्ध जब सन्हाराश्त्र से शनि को युद्ध को ललकारा तो शनि ने भय से युद्ध को टाल दिया और शाकटभेद योग को ख़त्म कर दिया | इससे प्रसन्न दशरथ जी ने शनि के लिए ऐसे स्तोत्र की रचना किया |
मित्रों मै बहुत विद्वान् तो नहीं परन्तु मकर राशि का जातक होते हुए भी मैं कभी शनि की पूजा नहीं करता जब की शनि मेरे राशि का स्वामी है | एक भरोसो एक बल “श्री हनुमान जी” की पूजा करता हूँ और मुझे लगता है आज जो भी बल,बुद्धि,विद्या, मान, सम्मान, सम्पदा है सब उन्ही हनुमान जी की कृपा से है |
मै नाशिक में रहा महीनों, मित्र लोग कहते रहे पर मैं न शनि सिंगणापुर गया ना ही शिरडी साइ के दर्शन | मै सिर्फ एक जगह गया भगुर “श्री सावरकर की जन्मस्थली” |
चित्र : मित्र अभिषेक मणि पाठक जी के साथ श्री संकट मोचन वाराणसी में पूजनार्थ एवं दर्शनार्थ जाने की स्मृति |
“वन उपवन मग गिरी गृह माहीं, तुन्हारे बल हम डरपत नाहीं”….
(चित्र) श्री संकट मोचन वाराणसी से शिवेश प्रताप “हुंकार”