राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ | Rashtriya Swayamsevak Sangh (R.S.S)

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
Rashtriya Swayamsevak Sangh (R.S.S)

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ Rashtriya Swayamsevak Sangh (R.S.S) की स्‍थापना सन् 27 सितंबर 1925 को विजय दशमी के दिन मोहिते के बाड़े नामक स्‍थान पर डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने की थी। संघ के 5 स्‍वयंसेवकों के साथ शुरू हुई विश्व की पहली शाखा आज 50 हजार से अधिक शाखाओ में बदल गई और ये 5 स्‍वयंसेवक आज करोड़ों स्‍वयंसेवकों के रूप में हमारे समाने है। संघ की विचार धारा में राष्ट्रवाद, हिंदुत्व, हिंदू राष्ट्र, राम जन्मभूमि, अखंड भारत, समान नागरिक संहिता जैसे विजय है जो देश की समरसता की ओर ले जाता है आइये जानते है R.S.S के बारे में ….

संघ R.S.S को जानना जितना आसान उसको समझना उतना मुश्किल भी ! संघ के काम के बारे में जो दिखाया जाता है, जो बताया जाता है. वो संघ का काम नहीं है बल्कि संघ के स्वयंसेवकों का काम है.संघ का काम तो सिर्फ़ शाखा चलाना है. शाखाओं में व्यक्ति के चरिञ का निर्माण होता है. और यह सुनिश्चित करना कि ऐसा ही माहौल पूरे देश में निर्मित्त हो बस संघ का इतना छोटा सा काम है !

“संघ कुछ नहीं करता और स्वयंसेवक कुछ नहीं छोड़ते, सब कुछ करते हैं ”

संघ Rashtriya Swayamsevak Sangh 1925 से समझा रहा है. जो कुछ लोगों समझ में नहीं आता है. इसलिए संघ पर विश्वास नहीं होता. इसलिए संघ को समझने का प्रयास करना पड़ता है|

“संघ की तरह का कोई दूसरा मॉडल आज नहीं है. जिससे संघ की तुलना की जा सकें, ऐसा पूरी दुनिया में कोई दूसरा मॉडल नहीं है.”

संघ को कैसे जाने ?

संघ के बारे में पढ़कर संघ को नहीं जान सकते. परम पूजनीय गुरूजी ने कहा था “गत 15 वर्षों से संघ का सरसंघचालक होने के नाते अब मैं धीरे धीरे संघ को समझने लगा हूँ !

क्या संघ समझ से परे है ?

ऐसा भी नहीं है.  संघ R.S.S  को समझना आसान है और संघ को समझना मुश्किल भी है, संघ को जानने का एक ही रास्ता है|

हृदय में एक सकारात्मकता रखकर वास्तविक जिज्ञासा को लेकर, बिना किसी पूर्वाग्रह के श्रद्धा भक्तिपूर्ण तरीके से संघ को जानने का प्रयास करना |

संघ का स्वयंसेवक यह साधना जीवन भर करता है. अर्थात संघ को जानने की जिज्ञासा लेकर, शुद्ध अंत:करण से जो संघ का अनुभव लेते हैं .धीरे धीरे उनको संघ समझ में आने लगता है. हर दिन समझ की मात्रा बढती जाती है. लेकिन अगर पूर्वाग्रह से संघ को देखेंगे तो संघ समझ में नहीं आएगा |

संघ को देखना है तो लोग स्वयंसेवक को देखते हैं और साथ-साथ वो भी देखते हैं जो वो करता है और कहते हैं यही संघ है| लेकिन जिसमें से ऐसा सोच ऐसी कर्म करने की इच्छा विकसित होती है असल मायनों में वही संघ है|

R.S.S संघ अपने स्वयंसेवक पर विश्वास करता है वे हमारे विचार के सम्पर्क में आते हैं , हमारे विचार से चलने वाले कामों से निकलकर गये हैं . संघ जानता है स्वयंसेवक सोच विचार कर जो भी करेगा वो अच्छा ही होगा !

संघ विचार क्या है ?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कोई अलग से अपना विचार नहीं है. अपने देश के सभी लोगों का मिलकर जो चिन्तन बना है. संघ उसी चिंतन पर चलता है|

स्वतंत्रता के पूर्व अपने देश के उत्थान के लिए, कार्य करने वाले सभी लोग का उनके अनुभव से जो निष्कर्ष था.उस निष्कर्ष को पूरा करने का का काम संघ ने उठाया|

उन सभी महापुरुषों का चिन्तन था “हमें देश का भाग्य परिवर्तन करने के लिए अपनी बुराइयां छोड़कर, अपनी अस्मिता के लिए एक साथ मिलकर जीना-मरना चाहिए. और यह आदत बहुत दिनों से छूटी हुयी है. तो इनको इस आदत पर लगाने वाला एक संगठन होना चाहिए|

डा. हेडगेवार जी ने यह आदत डलवाने के लिए 1925 में संघ की स्थापना की| इस संगठन का बीजारोपण 10-12 साल पहले ही डाक्टर साहब के मन में हो चुका था|  1940 तक संघ के बारें में सभी विचारधारा के बुद्धिजीवियों की सहमति थी लेकिन 1940 के बाद धीरे-धीरे स्वार्थ राष्ट्रीय हित से बड़ा दिखाई देने लगा |

राष्ट्रीय पहचान क्यों ?

हम को आपस में जोड़ने वाली बात क्या है. हमारे यहाँ अनेक भाषाएं बोली जाती है. पंथ-संप्रदाय भी बहुत हैं नास्तिक से लेकर मूर्तिपूजा तक सब हमारे यहाँ हैं |खान-पान, रहन-सहन वेशभूषा सभी कुछ अलग हैं . एक सूत्र जो हम सभी भारतीयों को आपस में जोड़े हुए है, वह है

“विविधता में एकता सीखाने वाली हमारी संस्कृति”, सांस्कृतिक अस्मिता के नाम पर हम एक हैं !

देश की चार दीवारी के अंदर जन्मा, पला बढ़ा हुआ कोई भी व्यक्ति, चाहे उसकी पूजा पद्दति कोई भी हो, भाषा-प्रांत कोई भी हो,राजनितिक मान्यता कोई भी हो, फिर भी उसमें कहीं न कहीं उस पर ऐसा प्रभाव दिखाई देता है|जो दुनिया के अन्य किसी भी देश में दिखाई नहीं देता|

हमारी संस्कृति की एक अनूठी पहचान है. जब सभी एक जैसे ही हैं तो वह पहचान नहीं दिखती लेकिन जैसे ही हम भारत के बाहर दूसरों के बीच जाते | “हिन्दुस्तानी””भारतीय” और हिन्दू के रूप में हमारी पहचान की जाने लगती है. भारतीय,हिन्दू और आर्य संस्कृति यह तीनों परस्पर समानार्थी शब्द है !
देश की चार दीवारी में रहने वाले किसी भी व्यक्ति के पूर्वज बाहर से नहीं है. वो सभी भारतीय ही थे. हम सभी में एक बात समान है. हमारी विचारधार कोई भी हो. देशभक्ति की भावना उसके हृदय में झंझानित जरुर करती है. भारत माता उसके हृदय में देशभक्ति के तारों को छेड़ती है तब उसके मुख से देशभक्तिपूर्ण उदगार निकलते हैं .

 हिन्दू कौन है ?

हिंदुत्व को लेकर भ्रम है. हिन्दू नामक कोई पंथ-सम्प्रदाय-रिलीजन नहीं है|

“सभी पथ,सम्प्रदायों का सम्मान करने वाला, उनको स्वीकार करने वाला और अपने सम्प्रदाय पर श्रद्धापूर्वक चलने वाला हिन्दू है !

हिन्दू संगठन क्यो ?

मानव स्वभाव है परीक्षा में या जिन्दगी में जो आसान चुनौतियां हैं,उनको पहले हल किया जाता है. मुश्किल सवाल बाद में किये जाते है. इसलिए पहले जो खुद को हिन्दू कहते है. संघ उनको संगठित करके, उनका अच्छा जीवन खड़ा कर रहा है |

एक बार एक पत्रकार ने पूज्यनीय गुरु जी से प्रश्न पूंछा “मेरे गाँव में एक भी ईसाई या मुसलमान नहीं है.” तो मेरे गाँव में संघ की शाखा का क्या औचित्य? गुरु जी ने विनम्रता पूर्वक कहा “भले आदमी !

तुम्हारा गाँव क्या दुनिया में भी कोई मुसलमान या ईसाई न होता और हिन्दू समाज इस हालत में होता तो भी हम संघ का काम करते| R.S.S संघ का काम किसी के विरोध में नहीं है बल्कि संघ का काम हिन्दू हित में है|
इसलिए अंग्रेजों को देश से भगाने के लिए नहीं, मुसलमानों के भय से नहीं, ईसाई कन्वर्शन करवाते हैं इसलिए नहीं, बल्कि हिन्दू समाज के उत्थान के लिए, भारत माता के हितों की रक्षा का दायित्व हिन्दुओं का है. इसलिए हिन्दुओं को संगठित कर, शक्ति-सामर्थ्य से युक्त करना संघ का कार्य है !

संघ की पद्दति –

पहले अपने आपको ठीक करो एक उदाहरण बनों दूसरों के लिए जियो मनुष्य जीवन स्वार्थ के लिए नहीं परोपकार के लिए मिला है. पहले इसका व्यय राष्ट्रीय भावना के लिए करो फिर अंतर्राष्ट्रीय बंधुत्व की बातें करना. अपने पड़ोसियों के दुःख दर्द में शामिल न हो और भाषण दो विश्व बंधुत्व के.

इस तरह “त्याग और सेवा” जैसे गुणों से युक्त मनुष्य का निर्माण करने वाली प्रयोगशाला का नाम “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ” है |

1940 के बाद, संघ का स्वरुप देखकर राजनीतिक सत्ता का सिंहासन डोलने लगा. और संघ के खिलाफ दुष्प्रचार किया जाने लगा. मगर स्वयंसेवकों की दिन रात की कठिन तपस्या के कारण, एक दशक बाद ही वो कालखंड आया.

जब प्रधानमंत्री ने अन्य नेताओं के साथ माननीय संघचालक को विचार विनमेय के लिए बुलाया. 26 जनवरी 1963 की दिल्ली परेड में आर.एस.एस. की वाहिनी को शामिल किया गया|

इसके बाद संघ के स्वयंसेवकों ने एक से बढ़कर एक प्रकल्पों में बढ़चढ़कर हिसा लेना आरम्भ कर दिया. शीघ्र ही हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा और अनुशासन की वजह से स्वयंसेवकों ने अपने झंडे गाड़ दिए |

आपातकाल ने संघ के महत्व को पुन: समझाया Rashtriya Swayamsevak Sangh R.S.S के प्रचार तंत्र से देश ने प्रजातंत्र की रक्षा की तब संघ को देखने की समाज की नज़र बदल गयी थी. यह सब कैसे हुआ.

“संघ का विचार सत्य विचार है, अधिष्ठान शुद्ध है पवित्र है. इस शक्ति से ही संघ हर मुश्किल का सामना कर रहा है|

इन विचारों को व्यवहार में लाने वाली कार्यपद्दति को तैयार करने का काम, संघ शाखाओं के माध्यम से कर रहा है. बाकी सब बंद हो सकता है. संघ की शाखा कभी बंद नहीं होगी !

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Shweta Pratap

I am a defense geek

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