मंत्री रघुराज प्रताप सिंह “राजा भैया” के गृह जनपद प्रतापगढ़ से उनके सभी 11 जिला पंचायत सदस्य निर्विरोध चुने गए। तो ये है राजा भैया का करिश्मा ।
किसी शायर ने कहां है कि………… तुम ही ही नवाज़ बेवफाओं से तो हम कहां जाते ……..
हिंदुत्व वादी राजा भैया ने बड़ी मजबूरी में समाजवादी पार्टी का दामन थामा पड़ा । राजा भैया का परिवार एक जाना माना विश्व हिंदू परिषद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं भारतीय संस्कृति का समर्थक राजपरिवार रहा है ।
राजा भैया ने 1993 में हुए विधानसभा चुनाव से कुंडा की राजनीति में कदम रखा था। तब से वह लगातार अजेय बने हुए हैं। उनसे पहले कुंडा सीट पर कांग्रेस के नियाज हसन का डंका बजता था। हसन 1962 से लेकर 1989 तक कुंडा से पांच बार विधायक चुने गए।
राजा भैया 1993 और 1996 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी समर्थित, तो 2002 और 2007, 2012 के चुनाव में एसपी समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में विधायक चुने गए। राजा भैया, बीजेपी की कल्याण सिंह सरकार और एसपी की मुलायम सिंह सरकार में भी मंत्री बने। वर्तमान में वे उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट में खाद्य एवं रसद मंत्री है।
विश्व हिंदू परिषद के विस्तार प्रसार एवं भारतीय संस्कृति की रक्षा का जो कार्य राजा भैया के पूर्वजों ने किया है वह सराहनीय प्रशंसनीय है |
राजा भैया के बाबा स्वर्गीय श्री राजा बजरंग बहादुर सिंह ने भारत के सर्वश्रेष्ठ कृषि विश्वविद्यालय पंतनगर की आधारशिला रखी थी और वहां के फाउंडर वॉइस चांसलर भी रहे । बाद में हिमाचल के राज्यपाल भी । श्री राजा बजरंग बहादुर सिंह ने भारत में हरित क्रांति के प्रारंभ का बीज बोया था । आपने “हाउ टू ट्रेन योर डॉग” नामक पुस्तक भी लिखी। राय साहब बजरंग ने हिंद फ्लाइंग क्लब की स्थापना की थी। आज हमें पता भी नहीं ।
राजा भैया के पिता श्री उदय प्रताप सिंह जी ने दून स्कूल से पढ कर बाद में लंदन में पढ़ाई करने गए थे तब उन्हें अपने पिता का आदेश था कि लंदन में भी वह धोती कुर्ता पहन कर ही कॉलेज में जाएं और तिलक जरूर लगाएं । बाद में जापान से उन्होंने कृषि में स्नातक पूरा किया। राजा उदय सिंह को जापान से पर्यावरण विशेषज्ञ की उपाधि मिली।
उदय प्रताप सिंह कट्टर हिंदुवादी छवि के व्यक्ति है। विश्व हिंदू परिषद तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को अपनी अथाह संपत्तिया दान में दिया है। हमेशा से वे संघ के एक सक्रिय कार्यकर्ता रहे है। उत्तर प्रदेश मे सर्वप्रथम प्लास्टिक की थैलियों पर प्रतिबंध लगाने का श्रेय राजा उदय प्रताप सिंह को प्राप्त है। बतौर पर्यावरणविद इन्होंने प्रकृति नामक संस्था की स्थापना की है, जिसका मूल उद्देश्य प्रकृति एंव पर्यावरण को संरक्षित तथा प्रदुषण मुक्त करना है। उदय सिंह कई विद्यालयों के संस्थापक, संरक्षक हैं, उदाहरण के तौर पर भदरी स्थित बजरंग इंटर कालेज, डेरवा स्थित भद्रेश्वर इंटर कालेज आदि। लोग इन्हें बाबा साहेब, राजा साहेब, महाराज आदि आदरसूचक शब्दों से संबोधित करते है।
श्री उदय प्रताप सिंह जीने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं विश्व हिंदू परिषद के लिए अपना पूरा जीवन होम कर दिया । राम मंदिर आंदोलन के दौरान और उन्होने हिंदू धर्म की सेवा के लिए अपनी रियासत का खजाना और अनाज का भंडार भी खोल दिया ।
और इसके बदले में भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें बुढ़ापे मे टाडा केस और जेल की सलाखो की दौड़ लगवाई । जब राजा भैया जैसे समर्पित देशभक्त परिवार पर जुल्म हो रहा था तब उत्तर प्रदेश में मायावती की सरकार भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से चल रही थी । वर्ष २००२ में, मायावती ने एक राजनीतिक षडयंत्र के तहत आतंकवाद निरोधक क़ानून का दुरूपयोग करते हुए उदय सिंह के बेटे विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ राजा भैया को के साथ साथ ७० वर्षीय उदय प्रताप सिंह व भतीजे अक्षय प्रताप सिंह को जेल भेजवाया। हालाकि बाद में इनके भतीजे अक्षय को जमानत मिल गई, लेकिन उदय प्रताप और राजा भैया को जमानत नहीं मिली। इस दौरान इन्हें लगभग एक वर्ष जेल में रहना पड़ा।
आज पुरस्कार वापसी के समय कांग्रेस एवं बामपंथीयो के समर्थकों का वफादारी देख रहा हूं तो मुझे आश्चर्य नहीं होता है। राष्ट्र विरोधियों के अपने पाले लकड़बग्घों को मांस की बेटियां मिलती रहीं और हम अपने समर्पित देश भक्तो, समाजसेवीयों को कुछ नहीं दे पाए ।
जब एक बुद्धिजीवी सम्मान या राजनैतिक शक्ति के लिए किसी विचारधारा का समर्थन करता है तो वामपंथी और कांग्रेस उसे एक सौदे के रूप में लेती है और उस समर्थन के बदले कांग्रेस एवं वामपंथी दल ऐसे विचारको को बहुत फायदे भी पहुंचाते है |
परंतु जो व्यक्ति दक्षिण पंथी विचारधारा एवं भारतीय संस्कृति का समर्थन करता है पता नहीं क्यों भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अथवा विश्व हिंदू परिषद उसके एवज में उसे कुछ भी नहीं देता है और भारत का एक आम हिंदू नागरिक भी यही समझता है कि वह तो अपनी स्वेच्छा से सेवा करने आया है । करो अौर मरो । दिलीप सिंह जूंदेव को ही देख लीजिए ।
आज के समय में जब एक बुद्धिजीवी को यह निर्णय लेना होता है कि वह देश भक्तों के साथ जाए या वामपंथियों के साथ तो उसे कहीं ना कहीं कांग्रेस और बामपंथी के साथ संबंध अधिक मजबूत लगता है । हम राष्ट्रभक्त अपने लोगों की सुरक्षा तय नही कर पाते ।यह हमारी विफलता है और इसपर हमें विचार करना चाहिए ।
न पुरस्कार ही ना सम्मान ही दे पाए अपनो को हम ।
– शिवेश “हुंकार”