ढोल गवार शुद्र पशु नारी का अर्थ क्या है
ढोल गंवार शूद्र पशु नारी चौपाई नंबर:
यह चौपाई सुन्दरकांड के दोहा नंबर 58 के बाद की छठी चौपाई है|प्रसंग में राम जी द्वारा समुद्र से 3 दिन से प्रार्थना की जा रही है मार्ग प्रदान करने हेतु और समुद्र के द्वारा यह संवाद राम जी को कहा जा रहा है……
अपनी बात शुरू करने से पहले एक दोहा कहना चाहूँगा ………
करनी बिन कथनी कथे , अज्ञानी दिन रात|
कुकर ज्यों भुकता फिरे , सुनी सुनाई बात||
अर्थ : जिस प्रकार एक कुत्ते के भोंकने पर अनायास ही बिना कारन जाने बहुत सारे कुत्ते भूंकने लगते हैं उसी तरह अज्ञानी और बुद्धिहीन व्यक्ति भी बिना करनी किये सिर्फ सुनी सुनाई बातों को रटते रहते हैं |
कुछ लोग जिन्होंने आज तक राम चरित मानस का एक भी चौपाई नहीं पढा हो वो भी तपाक से कह देता है की अरे तुलसीदास ने ऐसा लिख दिया ……..कल भी एक सो-काल्ड बुद्धिजीवी ऐसा ही पूछ रहे थे …..लो वेस्ट जींस पहन कर …
आइये विचार करें ऐसा क्यों कहा गया:
सभय सिंधु गहि प्रभु पद केरे क्षमहु नाथ सब अवगुण मेरे,
इस तरह तीन दिन से मार्ग की याचना करने के बाद जब राम जी ने वाण का संधान किया तो समुद्र ने डर कर प्रगट होकर विनती किया की है कि नाथ मुझे क्षमा करें और फिर कुछ नीति की बाते कहीं राम जी से और समुद्र ने उन्ही बातों में कहा;
“प्रभु भल किन्ही मोहि सीख दीन्ही, मरजादा पुनि तुम्हारी किन्ही |
ढोल गंवार शुद्र पशु नारी , सकल ताडना के अधिकारी ||”
इस तरह से ये संवाद समुद्र ने राम जी से कहा है ,न की राम ने कहा है और न ही तुलसीदास जी ने अपना विचार प्रकट किया है| बस तुलसीदास जी ने वो सीधा संवाद रख दिया है मानस में |
दूसरी बात की मै भी अवध का रहने वाला हू और मानस भी अवधी भाषा में लिखी हुई ,अवधी भाषा में “ताडना” शब्द समझने के लिए प्रयोग होता है न की दंड के लिए | अवधी में आंचलिक भाषा में हम आज भी इस शब्द को बहुत प्रयोग करते हैं |
इस तरह से समुद्र ने भी यहाँ ढोल,गंवार.शुद्र,पशु और नारी को ताड़ लेने यानी समझ लेने की बात कही है |