जीवन के श्लोक भाग-4 | Shlokas for Life with Hindi meaning

Spread the love! Please share!!

जीवन के श्लोक भाग-4 

आशा है आप सभी ने भाग 1भाग 2 एवं भाग 3 पढ़ कर अब यहाँ भाग 4 पढ़ने जा रहे हैं। आशा है की जीवन पर आधारित यह संस्कृत श्लोक आप सभी को बहुत अच्छे लग रहे होंगे।

 

अहं च त्वं च राजेंद्र ! लोकनाथावुभावपि ।
बहुव्रीहिरहं राजन् ! षष्ठीतत्पुरुषो भवान् ॥

हे राजन् ! मैं और आप, हम दोनों ही लोकनाथ हैं । आप षष्ठी तत्पुरुष समास हो, तो मैं बहुव्रीहि समासरुप हूँ ।

भो दारिद्र्य ! नमस्तुभ्यं सिद्धोऽहं त्वत्प्रसादतः ।
पश्याम्यहं जगत्सर्वं न मां पश्यति कश्चन ॥

हे दारिद्र्य तुजे नमस्कार हो । तेरे कृपा-प्रसाद से मुजे सिद्धि मिल गयी है कि मैं तो समस्त जगत को देख सकता हूँ पर मुजे कोई नहीं देख पाता ! (अर्थात् दरिद्र को सब जगह से दुर्लक्ष ही प्राप्त होता है । )

खळः सर्षपमात्राणि परच्छिद्राणि पश्यति ।
आत्मनो बिल्वमात्राणि पश्यन्नपि न पश्यति ॥

दुष्ट व्यक्ति दूसरे के राई जितने छोटे दोष भी देखता है, पर स्वयं के बिल्वपत्ते जैसे बडे बडे दोष दिखने के बावजुद भी उन्हें नहीं देखता !

पंगो ! धन्यस्त्वमसि न गृहं यासि योऽर्थी परेषाम्
धन्योऽन्ध ! त्वं धनमदवतां नेक्षसे यन्मुखानि ।
श्लाध्यो मूक ! त्वमपि कृपणं स्तौषि नार्थाशयायः
स्तोतव्यस्त्वं बधिर् ! न गिरं यःखलानां शृणोपि ॥

हे पंगु ! तू धन्य है कि अर्थांध होकर धनवान के घर नहीं जाता । हे अंधे ! #तू धन्य है कि धन के मद में प्रचुर लोगों के मुँह नहीं देखता । हे गूँगे ! तू धन्य है कि धन पाने की आशा से कंजूस की स्तुति नहीं करता । हे बेहरे ! तू भी स्तुतितुल्य है क्यों कि तू दुर्जनों की वाणी नहीं सुनता ।

आलस्यं स्त्रीसेवा सरोगता जन्मभूमिवात्सल्यम् ।
संतोषो भीरूत्वं षड् व्याघाता महत्त्वस्य ॥

आलस्य, स्त्रीपरायणता, सदा का रोग, जन्मभूमि से आसक्ति, (अल्प) संतोष और भीरुता (असाहस), ये छे बडप्पन पाने में (प्रगति में) विघ्नरुप है ।

रोगी चिरप्रवासी परान्न भोजी परावसथशायी ।
यज्जीवति तन्मरणं यन्मरणं सोऽस्य विश्रामः ॥

रोगी, नित्य प्रवासी, पराया खानेवाला और पराये घर सोनेवाला, इन सबका जीना मरणतुल्य है; और मृत्यु उनका विश्राम है

 सुलभाः पुरुषाः राजन् सततं प्रियवादिनः ।
अप्रियस्य च पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभः ॥

हे राजा ! सदैव प्रिय भाषण करनेवाले सुलभ मिल जाते हैं, किंतु अप्रिय जो हितदायी हो ऐसा भाषण करनेवाले वक्ता एवं श्रोता, दोनों ही मिलना दुर्लभ होता है ।

सर्वे यत्र विनेतारः सर्वे पंडितमानिनः ।
सर्वे महत्त्वमिच्छिन्ति कुलं तदवसीदति ॥

जिस कुल में (समाज में) सभी नेता होते हैं, जहाँ सभी स्वयं को पंडित समजते हैं, सभी बडप्पन चाहते हैं, उस कुल (या समाज) का नाश होता है ।

यस्यास्ति वित्तं स नरः कुलीनः स पण्डित स श्रुतवान् गुणज्ञः ।
स एव वक्ता स च दर्शनीयः सर्वे गुणाः कांचनमाश्रयन्ते ॥

जिसके पास वित्त होता है, वही कुलीन, पण्डित, बहुश्रुत और गुणवान समजा जाता है । वही वक्ता और सुंदर भी गिना जाता है । सभी गुण सोने के आश्रित है ।

अलंकरोति हि जरा राजामात्यभिषग्यतीन् ।
विडंबयति पण्यस्त्री मल्लगायकसेवकान् ॥

राजा, अमात्य (प्रधान), वैद्य और संन्यासी को शोभा देनेवाली जरा (बुढापा), गणिका, मल्ल, गवैये और सेवक का अवमान कराती है ।

वयोवृद्धास्तपोवृद्धा ये च वृद्धा बहुश्रुताः ।
ते सर्वे धनवृद्धानां द्वारि तिष्ठन्ति किंकराः ॥

चाहे वयोवृद्ध हो, तपोवृद्ध हो या ज्ञानवृद्ध हो; पर ये सभी धनवृद्ध (धनवान) के घर पे दास होकर खडे होते हैं !

Shlokas for Life with Hindi meaning

कोऽतिभारः समर्थानां किं दूरं व्यवसायिनाम् ।
को विदेशः सुविद्यानां कः परः प्रियवादिनाम् ॥

समर्थ व्यक्ति को भार कहाँ ? व्यवसायी इन्सान को दूरी कहाँ ? विद्यावान के लिए विदेश (जैसा) कहाँ ? प्रियवादी को कोई पराया कहाँ ?

वक्तारः किं करिष्यन्ति श्रोता यत्र न विद्यते ।
नग्नक्षपणके देशे रजकः किं करिष्यति ॥

जहाँ श्रोता न हो वहाँ वक्ता क्या करे ? निर्वस्त्र लोगों के देश में धोबी क्या करे ?

नवं वस्त्रं नवं छत्रं नव्या स्त्री नूतनं गृहम् ।
सर्वं तु नूतनं शस्तं सेवकान्ने पुरातने ॥

वस्त्र नया, छाता नया, स्त्री नयी, घर नया – ये सभी नये हो, पर नौकर और अनाज पुराने ही अच्छे ।

मांसं मृगाणां दशनौ गजानाम् मृगद्विषां चर्म फलं द्रुमाणाम् ।
स्त्रीणां सुरूपं च नृणां हिरण्यम् एते गुणाः वैरकरा भवन्ति ॥

हिरन का मांस, हाथी दांत, शेर का चमडा (हिरन मारनेवाला याने शेर), पेड के फल, स्त्री का सौंदर्य और मनुष्य का द्रव्य, इतने गुण बैर खडा करनेवाले होते हैं ।

एको देवः केशवो वा शिवो वा एकं मित्रं भूपतिर्वा यतिर्वा ।
एका वासः पत्तने वा वने वा एका भार्या सुन्दरी वा दरी वा ।

इष्टदेव एक ही रखना, चाहे केशव हो या शिव; मित्र भी एक ही रखना, चाहे राजा हो या संन्यासी; निवास एक ही रखना, चाहे शहर हो या जंगल; पत्नी भी एक ही करना, या तो सुंदरी या फिर गुफा ।

साहित्यसंगीतकलाविहीनः साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः ।
तृणं न खादन्नपि जीवमानः तद्भागधेयं परमं पशूनाम् ॥

जिस व्यक्ति के पास साहित्य नहीं, संगीत नहीं और कला भी नहीं, वह पूंछ और सींघ बगैर का पशु ही है । घास न खाकर वह जीवित रहता है, यह सचमुच पशुओं का परम् भाग्य है ।

उत्तमा आत्मनः ख्याताः पितुः ख्याताश्च मध्यमाः ।
अधमा मातुलात् ख्याताः श्वशुराश्चाधमाधमाः ॥

जिस की पहेचान आत्मख्याति से हो वह उत्तम, पितृख्याति से हो वह मध्यम, मातुल (मामा) की ख्याति से हो वह अधम, पर ससुर की ख्याति से हो वह अधम में अधम है ।

अबला यत्र प्रबला बालो राजा निरक्षरो मंत्री ।
नहीं नहीं तत्र धनाशा जीवितुमाशापि दुर्लभा भवति ॥

जहाँ स्त्रैण वृत्ति का वर्चस्व होता है, राजा बाल बुद्धि होता है, और मंत्री अशिक्षित होता है, वहाँ धन की आशा तो दूर, जीवन की आशा रखना भी दुर्लभ है ।

जीवन पर संस्कृत श्लोक भाग-5

Facebook Comments

Spread the love! Please share!!
Shweta Pratap

I am a defense geek

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is the copyright of Shivesh Pratap.