जीवन पर संस्कृत श्लोक भाग-2
Sanskrit Shlok on Life with Hindi meaning
पात्रे त्यागी गुणे रागी भागी परिजनैः सह ।
शास्त्रे बोद्धा रणे योद्धा प्रभुः पञ्चगुणो भवेत् ॥
नायक के पाँच गुण होते हैं – त्यागी, गुणों के लिए अनुराग, बंधुओं को समभाग देना, शास्त्रज्ञ, और पराक्रम ।
तिथि र्वारश्च नक्षत्रं योगः करणमेव च ।
तत्पञ्चाङ्गमिति प्रोक्तं ॥
तिथि, वार, नक्षत्र, योग, और करण – ये पाँच काल के अंग हैं ।
न नर्मयुक्तं वचनं हिनस्तिन स्त्रीषु राजन् न विवाहकाले ।
प्राणात्यये सर्वधनापहारे पञ्चानृतान्याहुरपातकानि ॥
मज़ाक में, पत्नी के पास, विवाह के वक्त, प्राण जाने का प्रसंग हो तब, और सब लुट जाने वाला हो तब – इन पाँच अवसरों पर झूठ बोलने से पाप नहीं लगता ।
दाता दरिद्रो कृपणो धनाढ्यः पापी चिरायुः सुकृति र्गतायुः ।
कुले च दास्यं अकुले च राज्यंकलौ युगे षड्गुणमावहन्ति ॥
कलियुग में सब विपरीत होता है; दाता गरीब, और लोभी धनिक होता है; पापी दीर्घायु और सत्पुरुष अल्पायु होते हैं; कुलीन इन्सान दास होता है और अकुलीन राज्य करता है !
राजाश्रयः तस्करताश्वपण्यं आथर्वणं चापि समुद्रयानम् ।
एनानि सिध्यन्ति महाफलानि विपर्यये प्राणहराणि पञ्च ॥
राज्याश्रय, डकैती, अश्वों का व्यापार (अति साहसी व्यापार), अर्थर्ववेद के मंत्र, और समुद्रगमन, ये यदि सिद्ध हों तो महाफल देते हैं, पर अगर निष्फल हों तो प्राणहारी होते हैं ।
आत्मनाम गुरोर्नाम नामातिकृपणस्य च ।
श्रेयःकामो न गृह्नीयात् ज्येष्ठापत्यकलत्रयोः ॥
कल्याण की कामना वाले ने स्वयं को, गुरु को, अतिलोभी पुरुष को, ज्येष्ठ पुत्र को, और पत्नी को नाम से नहीं संबोधना चाहिए ।
अधीरः कर्कशः स्तब्धः कुचलः स्वयमागतः ।
पञ्च विप्रा न पूज्यन्ते बृहस्पतिसमा अपि ॥
चंचल, कठोर, दुराग्रही, कुवस्त्रधारी, और आगंतुक (बिना बताये आनेवाला), ऐसे ब्राह्मण यदि बृहस्पति समान विद्वान हो तो हि पूज्य है, अन्यथा नहीं ।
गीतासहस्रनामैव स्तवराजो ह्यनुस्मृतिः ।
गजेन्द्रमोक्षाणं चैव पञ्चरत्नानि भारते ॥
भगवद्गीता, विष्णु सहस्रनाम, भीष्मस्त्वराज, अनुस्मृति, और गजेन्द्रमोक्ष – महाभारत के ये पाँच रत्न हैं ।
तक्षश्च तन्त्रवायश्च नापितो रजकस्तथा ।
पञ्चमः चर्मकारश्च कारवः शिल्पिनो मताः ॥
सुतार, बूनकर, हजाम, धोबी, और चमार, ये पाँच शिल्पकार माने गये हैं ।
कुग्रामवासः कुजनस्य सेवाकु भोजनं क्रोधमुखी च भार्या ।
मूर्खश्च पुत्रो विधवा च कन्या विनाऽग्निना पञ्च दहन्ति कायम् ॥
गलत गाँव में निवास, बूरे लोगों की सेवा, खराब भोजन, क्रोधी पत्नी, मूर्ख पुत्र और विधवा बेटी, बगैर अग्नि के भी शरीर को जलाते हैं ।
भार्यावियोगः स्वजनापबादः ऋणस्य शेषं कृपणस्य सेवा ।
दारिद्र्यकाले प्रियदर्शनं च विनाऽग्निना पञ्च दहन्ति कायम् ॥
पत्नी का वियोग, स्वजनों की निंदा, कर्ज, कृपण (कंजूस) की सेवा, और गरीबी में प्रियजन का दर्शन – ये पाँचों अग्नि के बगैर भी शरीर को जलाते हैं ।
द्यूतेन धनमिच्छन्ति मानमिच्छन्ति सेवया ।
भिक्षया भोगमिच्छन्ति ते दैवेन विडम्बिताः ॥
जूए से धन प्राप्ति की इच्छा रखने वाले, सेवा करके मान प्राप्ति की इच्छा करने वाले, और भिक्षा द्वारा (मांगकर) भोग प्राप्ति की कामना रखने वाले दुर्भाग्य को प्राप्त होते हैं ।
अविश्रामं वहेत् भारं शीतोष्णं च न विन्दति ।
ससन्तोष स्तथा नित्यं त्रीणि शिक्षेत गर्दभात् ॥
विश्राम लिये बगैर भार वहन करना, ताप-ठंड न देखना, और सदा संतोष रखना – ये तीन गधे से सीखने चाहिए ।
मनःशौचं कर्मशौचं कुलशौचं च भारत ।
देहशौचं च वाक्शौचं शौचं पंञ्चविधं स्मृतम् ॥
मनशौच, कर्मशौच, कुलशौच, देहशौच, और वाणी का शौच – ये पाँच प्रकार के शौच हैं ।
गोमूत्रं गोमयं क्षीरं दधि सर्पिस्तथैव च ।
गवां पञ्च पवित्राणि पुनन्ति सकलं जगत् ॥
गोमूत्र, गोबर, दूध, दहीं, और घी, गाय से मिलनेवाले ये पाँच पदार्थ जगत को पावन करते हैं ।
प्रभुर्विवेकी धनवांश्च दाता विद्वान् विरागी प्रमदा सुशीला ।
तुरङ्गमः शस्त्रनिपातधीरः भूमण्डलस्याभरणानि पञ्च ॥
विवेकी स्वामी, धनवान दानी, विद्वान विरागी, सुशील स्त्री, शस्त्रनिपात (शस्त्र युद्ध) के बीच धैर्य से खडा रहने वाला घोडा – ये पाँच भूमंडल के आभूषण हैं ।
वैद्यस्तर्कविहीनो निर्लज्जा कुलवधूर्यति र्मूर्खः ।
कटके च प्राहुणिकः मस्तकशूलानि चत्वारि ॥
तर्क रहित वैद्य, लज्जा विहीन कुलवधु, मूर्ख यति, और सैन्य में जाते समय आया हुआ मेहमान – ये चार मस्तक में शूल उत्पन्न करने वाले हैं ।
युद्धं प्रातरुत्थानं भोजनं सह बन्धुभिः ।
स्त्रियमापद्रता रक्षेत् चतुः शिक्षेत कुक्कुटात् ॥
सुबह जल्दी उठना, युद्ध करना, बंधुवर्ग के साथ भोजन करना, और स्त्री का आपत्ति में रक्षण करना – ये चार बातें मुर्गे से सीखनी चाहिए ।
अभ्यर्थितस्तदा चास्मै स्थानानि कलये ददौ ।
द्यूतं पानं स्त्रियः हिंसा यत्राधर्मश्चतुर्विधः ॥
कलि के बिनती करने पर, परिक्षित ने उसे चार स्थान दिये – जुगार, मद्यपान, स्त्रीयों से क्षुद्र व्यवहार, और हिंसा ।
धनेषु जीवितव्येषु स्त्रीषु भोजनवृत्तिषु ।
अतृप्ताः मानवाः सर्वे याता यास्यन्ति यान्ति च ॥
धन, जीवन, स्त्री, और भोजन – इन में सब मनुष्यों को सदैव असंतोष रहा करता है ।
अवृत्ति र्भयमंत्यानां मध्यानां मरणाद्भयम् ।
उत्तमानां तु मर्त्यानामावमानाद्भयम् ॥
कनिष्ठ को बेरोज़गारी का भय होता है, मध्यम को मृत्यु का, और उत्तम मनुष्य को अपमान का भय होता है ।
पुस्तकं वनिता वित्तं परहस्तगतं गतम् ।
यदि चेत्पुनरायाति नष्टं भ्रष्टं च खण्डितम् ॥
पुस्तक, वनिता, और वित्त, परायों के पास जाने पर वापस नहीं आते; और यदि आते भी है, तो नष्ट, भ्रष्ट और खंडित होकर आते हैं ।
मुखं पद्मदलाकारं वाणी चन्दनशीतला ।
हृदयं क्रोधसंयुक्तं त्रिविधं धूर्तलक्षणम् ॥
कमल जैसा सुंदर मुख, चंदन सी शीतल वाणी, (पर) हृदय क्रोध से भरा हुआ – ये तीन धूर्त के लक्षण है ।
द्वाविमौ पुरुषौ लोके सुखिनौ न कदाचन ।
यश्चाधनः कामयते यश्च कुप्यत्यनीश्वरः ॥
दो प्रकार के लोग कभी सुखी नहीं होते; जितना धन है उससे अधिक ईच्छा करनेवाला, और सामर्थ्य न होते हुए भी कोप रखनेवाला ।
दूरस्थाः पर्वताः रम्याः वेश्या च मुखमण्डने ।
युद्धस्य वार्ता रम्या त्रीणि रम्याणि दूरतः ॥
पर्वत, वेश्या का मुखमण्डल, और युद्ध की बातें – ये तीन दूर से ही अच्छे लगते हैं ।
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः ।
कामः क्रोधः तथा लोभ स्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत् ॥
काम, क्रोध, तथा लोभ – ये तीन नर्क के द्वार, आत्मा की अधोगति करनेवाले हैं; इस लिए इनका त्याग करना चाहिए ।